लेव तलस्तोय की उपन्यासिका --
हाजी मुरात
भाग एक
मध्य गर्मियों का दिन था, मैं खेतों के रास्ते घर जा
रहा था। खेतों में घास मौजूद थी और राई कटने के लिए तैयार थी। वर्ष के इन दिनों
में खिले फूलों का चुनाव अद्भुत था। लाल-सफेद-गुलाबी, सुगन्धित और रोएँदार तिपतिया; दूध जैसे सफेद पर केन्द्र में
चमकीले, पीले एवं मधु-कटु गन्ध वाले
अक्षिपुष्प; मधुर सुगन्धि फैलाती पीली
जंगली सरसों; लंबे, गुलाबी और सफेद धतूरे के
घण्टाकार फूल; मोठ की चढ़ती बेलें; पीले, लाल और गुलाबी खुजलीमार पौधे; शान्त-गम्भीर बैंजनी कदली, जो नीचे पीली होने का सन्देह
देती है और जिसमें से एक तीखी सुवास फूटती है; चमकीली नीली अनाज बूटियाँ जो
सन्ध्या होने पर अरुणिम हो जाती हैं तथा बादामी गंध वाली कोमल वल्लरियाँ खिली हुई
थीं।
मैंने अलग-अलग फूलों के
बड़े-बड़े गुच्छ तोड़ लिए थे और घर की ओर बढ़ रहा था। तभी मैंने खाई में उगा और
पूरी तरह खिला बैंजनी गोखरू का एक शानदार पौधा देखा। इसे हम 'तातार' कहते हैं। यह कभी दराँती से
काटा नहीं जाता और यदि कभी संयोग से कट भी जाए तो घसियारे अपने हाथों को इसके
काँटों से बचाने के लिए इसे घास में बीन कर फेंक देते हैं। मैंने सोचा, मैं इस कँटीले फूल को उठा लूँ
और इसे अपने फूलों के गुच्छे के बीच रख लूँ। बस, मैं खाई में उतर गया। एक
झबरा-सा भौंरा तृप्त होकर फूल के बीच गहरी नींद में सोया पड़ा था। पहले मैंने उसे
वहाँ से भगाया। अब मैंने फूल तोड़ने का प्रयत्न किया। लेकिन यह दुष्कर सिद्ध हुआ, क्योंकि डंठल काँटों से भरा
हुआ था। मैंने अपने हाथ पर रूमाल लपेट लिया था, लेकिन वे रूमाल को बेध गए।
डंठल भयंकर रूप से इतना मजबूत था कि मैं पाँच मिनट तक उससे जूझता रहा और उसके
रेशों को एक-एक करके तोड़ता रहा। अंतत: जब मैं फूल तोड़ने में सफल हुआ, तब डण्ठल फूटकर छितर चुका था।
यह फूल भी उतना ताजा और सुन्दर प्रतीत नहीं हुआ। उसका रुक्ष स्थूल स्वरूप गुच्छे
के दूसरे फूलों से मेल नहीं खा रहा था। मुझे पश्चात्ताप हुआ कि मैंने एक फूल को
खराब कर दिया, जो अपनी जगह खिला हुआ ही
सुन्दर था। मैंने उसे फेंक दिया। 'कितनी ऊर्जा और जीवन-शक्ति!' अपने उस प्रयास को याद करते
हुए मैंने सोचा, जो मैंने उसे तोड़ने में किया
था। 'कैसी निराशोन्मत्तता के साथ
उसने अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष किया और फिर कैसे प्यार के साथ स्वयं को
समर्पित कर दिया था।'
मेरे घर का रास्ता ताजा जुते
और परती पड़े खेतों के बीच से होकर धूल भरी काली धरती पर से ऊपर की ओर जाता था।
जुती हुई जमीन एक बहुत विस्तृत धर्मशुल्क भूमि थी और इसके दोनों ओर और सामने जहाँ
तक नजर जाती थी, बस हल से बने सीधे खाँचे, जिन पर अभी हेंगा नहीं चलाया
गया था, ही दीख पड़ते थे। खेतों को
भलीभाँति जोता गया था, जिससे
एक भी पौधा या घास की कोई पत्ती ऊपर निकली दीख नहीं रही थी। केवल काली जमीन ही
सामने थी। 'मानव कितना विध्वसंक प्राणी
है! अपने जीवन निर्वाह के लिए वह किस प्रकार प्राकृतिक जीवन को ही नष्ट कर डालता
है,' उस जड़ काली धरती पर किसी
सचेतन जीव को अनजाने ही खोजते हुए मैंने सोचा। तभी सामने मार्ग के दाहिनी ओर एक
गुच्छा-सा कुछ मुझे दीख पड़ा। जब मैं निकट गया तो मैंने देखा कि यह भटकटैया
(तातार) का एक गुच्छा था।
इस 'तातार' की तीन शाखाएँ थीं। एक टूट कर
नीचे पड़ी हुई थी। इसका बचा हुआ भाग, कटी बाँह के टुकड़े की भाँति पौधे से चिपका हुआ था। शेष दो
में से प्रत्येक में एक फूल था। वे फूल कभी लाल रहे होंगे लेकिन अब काले पड़ चुके
थे। एक डंठल टूटा हुआ था। इसका ऊपर का आधा भाग अपने अंतिम छोर पर एक बदरंग फूल को
लिए लटक रहा था। लेकिन इसका दूसरा हिस्सा ऊपर की ओर सीधा तना हुआ था। पूरा पौधा हल
के पहिए के द्वारा कुचला जाकर विखंडित हो न वह तब भी खड़ा हुआ था, जबकि उसके शरीर का एक भाग
विनष्ट हो चुका था, उसकी
अँतड़ियाँ निकल आई थीं, उसका एक हाथ और एक आँख समाप्त हो चुके थे, फिर भी वह उद्धत खड़ा दिख रहा
था, इसके बावजूद कि मनुष्य ने उसके
आस-पास के सहोदरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। 'कितनी ऊर्जा,' मैंने सोचा, 'मनुष्य ने सब कुछ जीतने में, घास की लाखों पत्तियों को
नष्ट करने में खर्च की होगी, फिर भी यह अपराजित-सा खडा़ है।'
तभी मुझे काकेशस की एक पुरानी
कहानी याद आ गई, जिसके कुछ हिस्से को मैंने
स्वयं देखा, कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से
सुना और शेष को मैंने अपनी कल्पना से पूरा किया। वही कहानी, जिस रूप में मेरी स्मृति और
कल्पना में साकार हुई, यहाँ
प्रस्तुत है।
-1-
1851 के नवम्बर की एक ठण्डी शाम।
रूसी सीमा से लगभग पन्द्रह मील दूर चेचेन्या के एक लड़ाकू गांव मचकट में जलते हुए
उपलों का तीखा धुआं उठ रहा था, जब हाजी मुराद ने वहॉं प्रवेश किया। अजान देनेवाले
मुअज्जिनों का उच्च तीखा स्वर अभी-अभी रुका था और जलते उपलों की गंध से भरी शुद्ध
पहाड़ी हवा में नीचे झरने के पास इकट्ठे, बहस करते पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों की कंठ ध्वनियॉं सुनाई दे रही थीं। ये
ध्वनियॉं बाड़ों में बन्द किए जा रहे पशुओं और भेड़ों के रंभाने और मिमियाने से
ऊपर उठी सुनी जा सकती थीं। पशु और भेड़ें बाड़ों में वैसे ही ठूंसी जा रही थीं
जैसे मधुमक्खी के छत्ते में मधुमक्खियॉं।
हाजी मुराद शमील का एक
लेफ्टीनेण्ट था जो रूसियों के विरुद्ध शौर्यपूर्ण कार्यों के लिए विख्यात था। वह
उसे घेर कर चलते दर्जनों मुरीदों-अनुयाइयों या शिष्यों के साथ, अपने निजी ध्वज के नीचे ही
युद्धों में भाग लिया करता था। वह सिर पर टोपी पहने हुए था और उसने लबादा ओढ़ रख
था। उसकी राइफल की नाल बाहर निकली दीख रही थी। अपने एक मुरीद के साथ, सड़क पर मिले ग्रामीणों के
चेहरों पर अपनी सतर्क काली, तेज आँखों से एक सरसरी दृष्टि डालता हुआ और अपनी ओर उनका
ध्यान कम से कम आकर्षित करने का प्रयास करता हुआ वह आ रहा था। हाजी मुराद जब गॉंव
के बीच में पहुंचा, तो
चौराहे तक जाने वाली सड़क के बजाय वह बांयीं ओर संकरी गली में मुड़ गया। गली में वह
दूसरे मकान के सामने पहुंचा, जो पहाड़ी के नीचे दबा-सा दीखता था। यहॉं वह रुका और उसने
चारों ओर देखा। उस मकान के आगे सायबान के नीचे कोई नहीं था, लेकिन छत पर नया पलस्तर की गई
मिट्टी की चिमनी के पीछे फर का कोट पहने एक आदमी खड़ा था। हाजी मुराद ने चाबुक
फटकार कर और जीभ से ट्क-ट्क की आवाज कर उसका ध्यान आकर्षित किया। रात की टोपी और
फर के कोट से झिलमिलाता हुआ दिखाई देता एक पुराना वस्त्र पहने वह एक वृद्ध व्यक्ति
था। उसकी धुंधली आँखों पर बरौनियाँ नहीं थीं और पलकों को खोलने के लिए वह उन्हें
मिचका रहा था। हाजी मुराद ने रिवाजी ढंग से उसे ‘सलाम आलेकुम’ कहा और अपना चेहरा दिखाया।
‘आलेकुम सलाम’ वृद्ध ने कहा, जिससे उसके दंतहीन मसूढ़े
दीखाई पड़े। हाजी मुराद को पहचानते ही वह अपने दुर्बल पैरों को घसीटते हुए चिमनी
के पास पड़ी लकड़ी के तलों वाली अपनी चप्पलों तक ले गया। फिर घीमे से और
सावधानीपूर्वक उसने अपनी बाहें सकुड़नों भरी मिरजई की आस्तीनों में डालीं और छत से
लगी सीढ़ी से चेहरा सामने करके नीचे उतरने लगा। वृद्ध ने धूप से झुलसी दुबली-पतली
गर्दन पर टिका सिर हिलाया और दंतहीन जबड़ों से निरंतर बुदबुदाता रहा। जब वह नीचे
पहुंचा तब उसने विनम्रतापूर्वक हाजी मुराद के घोड़े की लगाम और दाहिनी रकाब पकड़ ली, लेकिन हाजी मुराद का मुरीद
फुर्ती से घोड़े से उतरा और उसने वृद्ध का स्थान ले लिया। उसे एक ओर हटाकर उसने
घोड़े से उतरने में हाजी मुराद की सहायता की। हाजी मुराद घोड़े से उतरकर हल्का-सा
लंगड़ाता हुआ सायबान के नीचे आया। लगभग पन्द्रह वर्ष का एक लड़का दरवाजे से निकलकर
उसकी ओर आया और अपनी छोटी चमकदार आँखों से आगन्तुक को विस्मयपूर्वक देखने लगा।
‘‘दौड़कर मस्जिद तक जा और अपने
पिता को बुला ला।” वृद्ध
ने उससे कहा। इसके पश्चात् उसने बत्ती जलाई और चरमराहट के साथ हाजी मुराद के लिए
घर का दरवाजा खोला। जिस समय हाजी मुराद घर में प्रवेश कर रहा था पीले ब्लाउज और
नीले पायजामे पर लाल गाउन पहने एक कृशकाय वृद्धा कुछ गद्दे लिए हुए अंदर के दरवाजे
से आयी।
‘‘आपका आगमन सुख-शान्ति लाए,” वह बोली और अतिथि के लेटने के
लिए सामने की दीवार के साथ दुहरा करके गद्दे बिछाने लगी।
‘‘आपके बेटे जीवित रहें”, हाजी मुराद ने अपना लबादा, राइफल और तलवार उतारकर वृद्ध
के हवाले करते हुए कहा।
वृद्ध ने सावधानीपूर्वक राइफल
और तलवार गृहस्वामी के हथियारों के साथ दो बड़े प्लेटों के बीच खूंटी पर लटका दिये
जो अच्छे ढंग से पलस्तर की हुई सफेदी पुती दीवार पर चमक रहे थे। हाजी मुराद ने
पिस्तौल को संभालकर अपने पीछे रख लिया। वह गद्दे के पास आया। उसने अपनी ट्यूनिक
उतारकर रख दी और गद्दे पर बैठ गया। वृद्ध अपनी नंगी एडि़यों पर टिककर उसके समने
बैठ गया। उसने अपनी आँखे बंद कर लीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथ ऊपर उठाये।
हाजी मुराद ने भी वैसा ही किया। फिर दोनों चेहरे पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए इस
प्रकार सस्वर नमाज अदा करने लगे कि उनके हाथ दाढ़ी की नोक का बार-बार स्पर्श करते
रहे।
‘‘ ने हबार ? (कोई समाचार)? ” हाजी मुराद ने वृद्ध से पूछा।
‘‘हबार योक (कोई समाचार नहीं
है)।” वृद्ध ने लाल और उदासीन आँखों
से हाजी मुराद के चेहरे के बजाय उसकी छाती की ओर देखते हुए उत्तर दिया। ‘‘मैं मधुमक्खियों में गुजारा
करता हूँ, और इस समय मैं अपने बेटे को
देखने आया हूँ। समाचार वही जानता है।”
हाजी मुराद ने अनुमान लगाया
कि वृद्ध बात नहीं करना चाहता। उसने अपना सिर हिलाया और अधिक कुछ नहीं कहा।
‘‘अच्छा
समाचार नहीं है।” वृद्ध
बोला, ‘‘समाचार केवल यह है कि खरगोश
सदैव चिन्तित रहते हैं कि उकाबों को किस प्रकार दूर रखा जाये और उकाब उन्हे एक-एक
कर झपट रहे हैं। पिछले सप्ताह रूसी कुत्तों ने मिशिको में भूसा जला डाला था। लानत
है उनकी आँखों को,” वृद्ध
गुस्से से बुदबुदाया।
हाजी
मुराद का मुरीद मजबूत लंबे डग भरता हुआ धीमे से प्रविष्ट हुआ। अपना लबादा, राइफल और तलवार उसने उतार दी
जैसा कि हाजी मुराद ने किया था और उन्हे उसी खूंटी पर टांग दिया जिस पर उसके
स्वामी के टांगे गये थे। केवल अपनी कटार और पिस्तौल उसने अपने पास रखी।
‘‘ वह कौन है?” मुरीद की ओर देखते हुए वृद्ध
ने पूछा।
‘‘वह एल्दार है, मेरा मुरीद,” हाजी मुराद ने कहा।
‘‘बिल्कुल ठीक” वृद्ध बोला और हाजी मुराद के
पास गद्दे पर आसन गृहण करने के लिए उसे इशारा किया। एल्दार पैर पर पैर रखकर बैठ
गया और बातें कर रहे वृद्ध के चेहरे पर अपनी बड़ी खूबसूरत आँखें स्थिर कर दीं।
वृद्ध ने उन्हें बताया कि उनके योद्धाओं ने सप्ताह भर पहले दो रूसी सैनिकों को
पकड़ा था। एक को मार दिया था और दूसरे को शमील के पास भेज दिया था। हाजी मुराद ने
दरवाजे की ओर सरसरी दृष्टि डाली और बाहर से आने वाली आवाज पर ध्यान केन्द्रित करते
हुए अन्यमनस्क भाव से वृद्ध की बात सुनी। घर के सायबान के नीचे कदमों की आहट थी।
तभी दरवाजा चरमराया और गृहस्वामी ने प्रवेश किया।
गृहस्वामी, सादो, लगभग चालीस वर्ष का व्यक्ति
था। उसकी दाढ़ी छोटी, नाक
लंबी और आँखें उसी प्रकार काली थीं, यद्यपि उतनी चमकदार नहीं थीं, जैसी उसके पन्द्रह वर्षीय
पुत्र की थीं जो उसे बुलाने गया था। वह भी अंदर आया और दरवाजे के पास बैठ गया।
सादो ने अपने लकड़ी के जूते उतार दिए। बिना हजामत किए हुए ठूंठी जैसे काले
बालोंवाले बड़े सिर पर से जीर्ण-शीर्ण फर की टोपी को उसने पीछे हटाया और तुरंत
हाजी मुराद के सामने पाल्थी मारकर बैठ गया।
उसने उसी
प्रकार आँखें बंद कर लीं, जिस प्रकार वृद्ध ने की थीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथों
को ऊपर उठाया। उसने सस्वर नमाज अदा की और बोलने से पहले चेहरे पर धीरे-धीरे अपने
हाथ फेरे। फिर उसने कहा कि शमील ने हाजी मुराद को जीवित या मृत पकड़ने का आदेश
भेजा था। शमील का दूत कल ही वापस गया था, और इसलिए सावधान रहना उनके लिए आवश्यक था।
‘‘मेरे घर में, जब तक मैं जीवित हूँ” सादो ने कहा, ‘‘कोई भी मेरे मित्र को नुकसान
नहीं पहुँचा सकता। लेकिन बाहर के विषय में कौन जानता है ? हमें इस पर विचार करना चाहिए।”
हाजी मुराद ने एकाग्रतापूर्वक
उसकी बात सुनी और सहमति में सिर हिलाया, और जैसे ही सादो ने बात समाप्त की, वह बोला -
‘‘हूँ … अब मुझे पत्र देकर एक आदमी
रूसियों के पास भेजना है। मेरा मुरीद जाएगा, लेकिन उसे एक मार्ग-दर्शक की
आवश्यकता है।”
‘‘मैं अपने भाई बाटा को भेजूंगा,” सादो ने कहा। ‘‘बाटा को बुलाओ,” उसने अपने बेटे से कहा।
लडका उत्सुकतापूर्वक अपनी
टांगों को उछालता और बाहों को लहराता हुआ तेजी से घर से बाहर निकल गया। दस मिनट
बाद वह गहरे ताम्बई रंग, छोटी टांगों वाले एक हृष्ट-पुष्ट चेचेन के साथ लौटा। उसने
आस्तीनों पर रोंयेदार मुलायम चमड़े का पैबंद लगा चिथड़ा पीला ट्यूनिक, और लंबी काली पतलून पहन रखी
थी। हाजी मुराद ने आगन्तुक को अभिवादन किया और एक भी शब्द व्यर्थ किए बिना तुरंत
बोला :
‘‘क्या तुम मेरे मुरीद को
रूसियों के पास ले जाओगे ?”
‘‘मैं ले जा सकता हूँ।” बाटा ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर
दिया। ‘‘मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कोई
भी चेचेन ऐसा नहीं है जो मुझसे बढ़कर हो। कुछ लोग आते हैं और आपसे दुनिया भर के
वायदे करते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं, लेकिन मैं यह कर सकता हूँ।”
‘‘अच्छा” हाजी मुराद बोला। ‘‘इस काम के लिए तुम्हें तीन
रूबल मिलेंगे।” तीन उंगलियॉं दिखाते हुए उसने
कहा।
बाटा
यह प्रदर्शित करता हुआ सिर हिलाता रहा कि वह समझ गया है, लेकिन उसने आगे कहा कि वह
पैसा नहीं चाहता, वह
केवल आदर भाव के कारण हाजी मुराद की सेवा के लिए तैयार हुआ था। पहाड़ों में सभी इस
बात को जानते हैं कि हाजी मुराद ने किस प्रकार रूसी सुअरों की पिटाई की थी।”
‘‘इतना ही पर्याप्त है।” हाजी मुराद बोला, ‘‘एक रस्सी को लंबा होना चाहिए, लेकिन भाषण छोटा होना चाहिए।”
‘‘तो मैं चुप रहूंगा।” बाटा बोला।
‘‘झरने के सामने जहॉं आर्गुन
मोड़ है, वहॉं जंगल में एक खुला स्थान
है और वहॉं सूखी घास के दो ढेर हैं। तुम्हे उस स्थान के विषय में मालूम है ?”
‘‘ मुझे मालूम है।‘‘
‘‘मेरे तीन घुड़सवार वहॉं मेरा
इंतजार कर रहे हैं।” हाजी
मुराद ने कहा।
‘‘अहा।” सिर हिलाते हुए बाटा बोला।
‘‘खान महोमा को पूछना।
खान-महोमा जानता है कि क्या करना है और क्या कहना है। क्या तुम उसे रूसी प्रधान, प्रिन्स, वोरोन्त्सोव के पास ले जा
सकते हो ?”
‘‘मैं ले जा सकता हूँ।”
‘‘उसे ले जाओ और वापस ले आओ।
ठीक ?”
‘‘बिल्कुल ठीक।”
‘‘उसे लेकर जंगल में वापस आओ।
मैं वहीं हूंगा।”
‘‘मैं यह सब करूंगा,” अपनी छाती पर अपने हाथों को दबाकर, उठकर खड़े होते हुए और बाहर
जाते हुए बाटा ने कहा।
‘‘एक दूसरा आदमी मुझे घेखी के
पास भेजना आवश्यक है,” बाटा
के चले जाने के बाद हाजी मुराद ने अपने मेजबान से कहा। ‘‘यह घेखी के लिए है,” ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ते
हुए उसने कहना जारी रखा, लेकिन जब उसने दो महिलाओं को कमरे में प्रवेश करते हुए देखा, उसने तुरन्त हाथ बाहर निकाल
लिया और रुक गया।
उनमें
से एक सादो की पत्नी थी। वही दुबली-पतली अधेड़ महिला, जिसने लाकर गद्दे बिछाये थे।
दूसरी लाल पायजामे पर हरे रंग का वस्त्र पहने एक युवती थी जिसके वस्त्र के वक्ष
भाग में धागे से चॉंदी के सिक्के जड़े हुए थे। चॉंदी का एक रूबल उसके मांसल
स्कंधस्थल के बीच लटकती मजबूत काली चोटी के अंत में लटका हुआ था। वह कठोर दिखने का
प्रयास कर रही थी, लेकिन
पिता और भाई की भॉंति मनकों जैसी उसकी आँखें उसके चेहरे पर झपक रही थीं। उसने
आगन्तुकों की ओर नहीं देखा, लेकिन स्पष्ट रूप से वह उनकी उपस्थिति से अवगत थी।
सादो की पत्नी एक नीची गोल
मेज में चाय, मक्खनवाले मालपुआ, चीज, पावरोटी और मधु लेकर आयी थी।
लड़की एक कटोरा, एक सुराही और एक तौलिया लायी
थी।
जब तक
दोनों महिलाएं मुलायम तलों वाले जूतों से खामोश कदम रखती हुई मेहमानों के सामने
सामान रखती रहीं; तब तक
सादो और हाजी मुराद चुप रहे। जब तक महिलाएं कमरे में रहीं एल्दार अपनी बड़ी आँखें
आड़े-तिरछे रखे पैरों पर गड़ाये पूरे समय मूर्तिवत बैठा रहा था। जब दोनों महिलाएं
कमरे से बाहर चली गयीं और दरवाजे के पीछे उनके कदमों की आवाज आनी बंद हो गयी, तब एल्दार ने राहत की ठण्डी
सांस ली और हाजी मुराद ने अपनी ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ा, उसके अंदर ठुंसी एक गोली, और उसके नीचे लपेट कर रखा
पत्र निकाला।
‘‘इसे मेरे बेटे तक पहुँचाना
है।” पत्र दिखाते हुए वह बोला।
‘‘ और उत्तर ?” सादो ने पूछा।
‘‘तुम उसे ले लेना और उसे मुझे
भेज देना।”
‘‘यह हो जाएगा,” सादो ने कहा और पत्र को अपनी
ट्यूनिक की जेब में रख लिया। फिर उसने सुराही अपने हाथ में पकडा और कटोरा हाजी
मुराद की ओर सरकाया। हाजी मुराद ने बाहें उघाड़ी, जिससे उनका गोरापन और
मांसपेशी दिखाई दीं। उसने अपने हाथों को स्वच्छ ठण्डे पानी की धार के नीचे किया
जिसे सादो सुराही से ढाल रहा था। जब हाजी मुराद ने मोटे साफ तौलिये से हाथ सुखा
लिये, वह भोजन के लिए मुड़ा। एल्दार
ने भी वैसा ही किया। जब वे भोजन कर रहे थे, सादो उनके सामने बैठा रहा था
और उनके आगमन के लिए उसने उन्हें अनेक बार धन्यवाद कहा था। लड़का दरवाजे के पास
बैठा, अपनी चमकती काली आँखों से उन
पर मुस्करा रहा था मानो वह अपने पिता के शब्दों की पुष्टि कर रहा था।
यद्यपि हाजी मुराद ने चौबीस
घण्टों से अधिक समय से भोजन नहीं किया था, फिर भी उसने बहुत थोड़ी ब्रेड
और चीज खायी और ब्रेड पर चाकू से थोड़ा-सा मधु लगाया।
‘‘हमारा शहद अच्छा है। यह वर्ष
शहद के लिए प्रसिद्ध रहा है। यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, और अच्छी गुणवत्ता वाला है,” वृद्ध ने कहा और यह देखकर
प्रसन्न हुआ कि हाजी मुराद उसका शहद खा रहा था।
‘‘शुक्रिया,” हाजी मुराद ने कहा और भोजन
लेना छोड़ दिया। एल्दार अभी भी भूखा था, लेकिन अपने स्वामी की भॉंति ही वह भी मेज से हट गया और उसने
हाजी मुराद की ओर कटोरा और सुराही बढ़ाया।
सादो जानता था कि हाजी मुराद
को रखकर वह अपने जीवन को खतरे में डाल रहा था। जब से हाजी मुराद का शमील के साथ
झगड़ा हुआ था, मृत्यु का भय दिखाकर सभी
चेचेन- वासियों के लिए उसका स्वागत ममनूअ (निषिद्ध) कर दिया गया था। वह जानता था
कि ग्रामीणों को किसी भी क्षण उसके घर में हाजी मुराद के मौजूद होने की जानकारी हो
सकती है और वे उसके आत्मसमर्पण की मांग कर सकते हैं। लेकिन घबड़ाने के बजाय वह
प्रसन्न था। वह मानता था कि यह उसका कर्तव्य है कि वह अपने मेहमान की रक्षा करे, भले ही इसके लिए उसे अपने
प्राण गंवाने पड़ें। उसने इस बात से अपने को प्रसन्न और गौरवान्वित अनुभव किया कि
वह एक ‘ड्यूटी कमाण्डेण्ट’ की भॉंति व्यवहार कर रहा था।
‘‘जब तक आप मेरे घर में हैं और
मेरा सिर मेरे कंधों पर है, कोई भी आपको नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा,” उसने पुन: हाजी मुराद से
दोहराया।
हाजी
मुराद ने उसकी चमकदार आँखों की ओर देखा और समझ गया कि वह सच कह रहा था।
‘‘ तुम्हे खुशी और लंबी उम्र
मिले।” उसने औपचारिकतापूर्वक कहा।
सादो
ने नेक शब्दों के लिए इशारे से इल्तज़ा करते हुए अपनी छाती को अपने हाथों से
दबाया।
0
जब हाजी मुराद ने किवाड़ बन्द
किये और जलाने के लिए तैयार लकडि़यॉं अंगीठी में डालने लगा, सादो विशेषरूप से प्रसन्नचित
और सजीव मन:स्थिति में कमरे से विदा हुआ और घर के पीछे की ओर परिवार के लिए बने
कमरों में चला गया। महिलाएं उस खतरनाक मेहमान के विषय में बातें करतीं हुई, जो आगे के कमरे में रात बिता
रहा था, अभी तक जाग रही थीं।
-2-
उसी रात वोजविजेन्स्क में
अग्रिम छावनी से तीन सैनिक और एक वारण्ट अफसर सगीर गेट की ओर रवाना हुए। वे उस
गांव से लगभग बारह मील की दूरी पर थे, जहाँ हाजी मुराद रात बिता रहा था। सैनिकों ने फर के जैकेट और
टोपियाँ, कंधों पर पट्टियाँ लगे ओवर
कोट और घुटनों से भी ऊँचे बूट पहन रखे थे जो उन दिनों कोकेशस में यूनीफार्म का
हिस्सा हुआ करते थे। अपने हिथयारों को कंधों पर लादे वे सड़क के साथ-साथ एक
फर्लांग तक गए, फिर दाहिनी ओर पत्तों से होकर
सरसराते हुए बीस कदम चले, और एक टूटे चिनार के पेड़ के पास खड़े हो गए, जिसका काला तना अंधेरे में
अस्पष्ट दिखाई दे रहा था। उस पेड़ के पास प्राय: एक संतरी रात्रि-रक्षक के रूप में
नियुक्त रहता था।
जब वे जंगल से होकर गुजर रहे
थे, पेड़ों के ऊपर दौड़ने का आभास
देते चमकीले तारे वृक्षों की नंगी शाखाओं के पार हीरे जैसा चमकते हुए ठहरे हुए थे।
‘‘ईश्वर को धन्यवाद कि यह सूखा
है,” वारण्ट अफसर पानोव बोला। उसने
संगीन लगी अपनी लंबी राइफल उतारी और आवाज के साथ पेड़ के सामने टिका दी। सैनिकों ने
भी उसका अनुसरण किया।
‘‘हाँ, मैं समझ गया, मैं उसे खो चुका हूँ, ” पानोव बुदबुदाया। “या तो मैं उसे भूल आया अथवा
वह रास्ते में गिर गया।”
‘‘आप क्या खोज रहे हैं? ” एक सैनिक ने हार्दिकतापूर्वक, प्रसन्न स्वर में पूछा।
‘‘मेरा पाइप… मुझे लानत है। काश ! मैं जान
पाऊँ कि वह कहाँ है।! ”
‘‘आप नली लाए हैं? ” प्रसन्न स्वर ने पूछा ।
‘‘नली … यह रही वह।”
‘‘आप उसे जमीन में गाड़ देगें? ”
‘‘क्या इरादा है? ”
“मैं उसे तुरंत बैठा दूंगा।”
गश्त के दौरान धूम्रपान सख्त
वर्जित था, लेकिन यह चौकी मुश्किल से ही
छुपी हुई थी। यह एक सीमा-चौकी थी जो कबीलाइयों को चोरी-छुपे तोपखाना लाने से रोकती
थी, जैसा कि वे पहले करते थे और
छावनी पर बमबारी किया करते थे। अंतत: अपने को तम्बाकू पीने से वंचित करने का पानोव
को कोई कारण नजर नहीं आया, और उसने प्रसन्न सैनिक के प्रस्ताव पर सहमति दे दी। सैनिक ने
अपनी जेब से चाकू निकाला और जमीन पर एक गड्ढा खोदने लगा। जब गड्ढा खुद गया, उसने उसे बराबर किया, नली का पाइप उस स्थान पर
बैठाया, छेद में कुछ तम्बाकू रखा, उसे नीचे की ओर दबाया और सब
कुछ तैयार था। दियासलाई धधकी और सैनिक के पिचके मुंह के पास एक क्षण के लिए जल उठी, क्योंकि वह पेट के बल जमीन पर
लेटा था। पाइप में सीटी की-सी आवाज हुई, और पानोव ने तंबाकू जलने की रुचिकर सुगंध अनुभव की।
‘‘तुमने उसे बैठा दिया ? ” खड़े होते हुए पानोव ने पूछा।
‘‘काम ठीक ठाक हो गया।”
‘‘बहुत अच्छा किया, आवदेयेव ! एक विशिष्ट दक्ष, लौंडे, एह ? ”
आवदेयेव अपने मुंह से धुआँ
बाहर छोड़ता हुआ ऊपर की ओर घूम गया, और उसने पानोव के लिए रास्ता बनाया।
पानोव पेट के बल लेट गया, अपनी आस्तीन से नली को पोछा
और तम्बाकू पीने लगा। जब उसने पीना बंद किया सैनिकों ने बाते प्रारंभ कर दी।
‘‘ वे कहते हैं कि कमाण्डिंग
अफसर पुन: आर्थिक संकट में फंस गया है। निश्चित ही उसने जुआ खेला होगा, ” एक सैनिक धीरे-धीरे बोला।
‘‘वह उसे वापस लौटा देगा।” पानोव बोला।
‘‘सभी जानते हैं कि वह एक अच्छा
अफसर है, ” उसकी बात का समर्थन करते हुए
आवदेयेव ने कहा।
‘‘मैं परवाह नहीं करता, यदि वह अच्छा अफसर है, ” पहला वक्ता भुनभुनाया, ‘‘मेरे विचार से कम्पनी का
कर्तव्य है कि उससे पूछताछ करे। यदि उसने कुछ लिया है, तो उसे बताना चाहिए कि कितना, और वह उसे कब लौटाएगा।”
‘‘यह निर्णय करना कम्पनी का काम
है, ” तम्बाकू पीना रोक कर पानोव ने
कहा।
‘‘वह उससे भाग नहीं सकेगा, आप भी यह निश्चित तौर पर समझ
सकते हैं,” आवदेयेव ने उसके सुर में सुर
मिलाते हुए कहा।
‘‘वह सब बहुत अच्छा है, लेकिन हमें रखने के लिए तो
मिली जई और हमने सामान रखने की पेटी मरम्मत करवायी वसंत के लिए… पैसा चाहिए, और यदि उसने वह लिया है…।” असंतुष्ट सैनिक ने कहना जारी
रखा। ‘‘यह सब कम्पनी के ऊपर है, मैंने कहा न, ” पानोव ने दोहराया। ‘‘ऐसा पहले भी घटित हुआ था।
उसने जो भी लिया है वह उसे वापस लौटा देगा।”
उन दिनों काकेशस में प्रत्येक
कम्पनी अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा
नियंत्रित करती थी। भत्ते के रूप में उसे प्रति व्यक्ति छ: रूबल पचास कोपेक
प्राप्त होते थे, और वह
अपने आप आपूर्ति करती थी। वह सब्जियाँ उगाती, चारागाह तैयार करती, परिवहन व्यवस्था कायम करती और
अच्छी तरह पोषित घोड़ों पर विशेष गर्व करती थी। फण्ड तिजोरी में रखा जाता था, और चाबी कम्पनी कमाण्डर के
पास होती थी। अपनी सहायता के लिए ऋण लेना कम्पनी कमाण्डर के लिए बार-बार की घटना
हो गयी थी। इस समय भी यही घटित हुआ था, और वही सैनिकों के चर्चा का विषय था। निकितिन असंतुष्ट था और
चाहता था कि हिसाब के लिए कमाण्डर को कहा जाये, लेकिन पानोव और आवदेयेव इस
बात की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे।
पानोव ने जब पीना समाप्त किया, तब निकितिन पाइप की ओर मुड़ा।
वह अपने ओवर कोट पर बैठ गया और पेड़ के सामने झुक गया। दल के लोग चुप हो गये थे और
आवाज केवल उनके सिरों के ऊपर पेड़ों की फुनगियों की ऊंचाई पर हवा के सरसराने की
थी। अचानक उन्हें हवा की सरसराहट से ऊपर श्रृंगालों का चीखना और विलखना सुनाई
पड़ा।
‘‘ उन्हें लानत, ये कैसा शोरगुल कर रहे हैं।” आवदेयेव बोला।
‘‘वे तुम पर हंस रहे हैं; क्योंकि तुम्हारा चेहरा भैंगा
है, ” नरम उक्र्रैनियन लहजे में
तीसरे सैनिक ने कहा।
पुन: चुप्पी पसर गयी। हवा
केवल पेड़ों की टहनियों को हिला रही थी, जिससे तारे कभी प्रकट होते तो कभी छुप जाते थे।
‘‘अन्तोनिच, मैं कहता हूँ,” मुस्कराते हुए आवदेयेव ने
अचानक पानोव से पूछा, ‘‘आप कभी
परेशान हुए ? ”
‘‘परेशान ! तुम्हारा अभिप्राय
क्या है? ” पानोव ने अनिच्छापूर्वक उत्तर
दिया।
‘‘मैं इस समय इतना परेशान हूँ… मात्र परेशान, कि आश्चर्य नहीं कि मैं कहीं
आत्महत्या न कर लूं।”
‘‘इसे समाप्त करो।” पानोव ने कहा।
‘‘मैनें पीने में पैसे इसलिए
उड़ाये, क्योंकि मैं परेशान था। मैं
पीने के लिए परेशान रहता था। और मैनें सोचा, मुझे अंधाधुंध पीना है।”
‘‘नियम से मदिरा-पान करना
मनुष्य को बदतर बनाता है।”
‘‘हाँ, लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ।”
‘‘गोया, तुम किस बात से परेशान हो ? ”
‘‘मैं ? मैं गृहासक्त हूँ।”
‘‘क्यों ? क्या तुम घर में बेहतर थे ? ”
‘‘हम अमीर नहीं थे, लेकिन वह एक अच्छी ज़िन्दगी थी, सुन्दर जीवन।”
और आवदेयेव पानोव को उस विषय
में बताने लगा, जैसा कि वह पहले भी कई बार कर
चुका था ।
‘‘भाई के बजाय मैं स्वेच्छा से
सेना में भर्ती हुआ था, ” आवदेयेव ने कहा, ‘‘उसके चार बच्चे थे, जबकि मेरी अभी शादी ही हुई थी। मेरी माँ चाहती थी कि मैं
सेना में जाऊं। मैनें कभी उज्र नहीं किया। मैनें सोचा, शायद अच्छे कार्यों के लिए वे
मुझे याद करेंगे। इसलिए मैं जमींदार से मिलने गया। वह एक अच्छा आदमी था, हमारा जमींदार, और उसने कहा, ‘‘अच्छा मित्र, तुम जाओ। इस प्रकार भाई के
बजाय मैं सेना में भर्ती हो गया।”
‘‘बहुत अच्छा।” पानोव ने कहा।
‘‘लेकिन अंतोनिच, अब आप इस पर अवश्य विश्वास
करेंगें, कि मैं परेशान हूँ। यह सब
इसलिए बदतर है, क्योंकि मैनें अपने भाई का स्थान
लिया था। मैं अपने से कहता हूँ कि इस समय वह एक छोटा जमींदार है, जबकि मैं तंगहाली में हूँ। और मैं जितना ही इस विषय में सोचता हूँ, यह उतना ही बदतर लगता है। इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता।”
आवदेयेव रुका। ‘‘क्या हम दोबारा तम्बाकू पियेंगे? ”
उसने
पूछा।
‘‘हाँ, उसे ठीक करो।”
लेकिन सैनिकों को तम्बाकू
पीने का आनन्द नहीं मिला। आवदेयेव अभी उठा ही था और वह पाइप ठीक करने ही वाला था, कि उन्हें हवा की आवाज के ऊपर सड़क पर चलते कदमों की आवाज सुनाई दी।
पानोव ने अपनी राइफल उठा ली और निकितिन को झिटका। निकितिन उठा और उसने अपना ओवर
कोट उठाया। तीसरा बोन्दोरेन्को भी उठ खड़ा हुआ।
‘‘ क्या मैं स्वप्न देख रहा था … क्या स्वप्न …!”
आवदेयेव बोन्दारेन्को पर
फुफकारा, और सैनिक जड़ होकर चुपचाप
सुनने का प्रयास करने लगे। जूतों पर चलते शिथिल कदम निकट आते जा रहे थे। अंधेरे
में पत्तियों और सूखी टहनियों की चरमराहट साफ सुनाई दे रही थी। तभी उन्हें चेचेन
की गुट्टारा भाषा में बातचीत करने की अनूठी आवाज सुनाई दी, और उन्होंने पेड़ों के बीच हल्की रोशनी में दो छायाओं को चलते देखा।
एक छाया छोटी और दूसरी लंबी थी। जब वे सैनिकों के बराबर पहुंचे पानोव और उसके साथी
हाथ में राइफल थामें सड़क पर आ गये।
‘‘ कौन जा रहा है ? ” पानोव चीखा।
‘‘शांतिप्रिय चेचेन, ” दोनों में से छोटे कद वाला
बोला। वह बाटा था। ‘‘न बन्दूक है, न तलवार, ” अपनी ओर इशारा करते हुए उसने
कहा, ‘‘प्रिन्स, आप देख सकते हैं।”
लंबा व्यक्ति अपने साथी के
बगल में शांत खड़ा था। उसके पास भी हथियार नहीं थे।
‘‘कर्नल से मिलने जानेवाले गुप्तचर हो सकते हैं।” पानोव ने अपने साथियों को स्पष्ट किया।
‘‘प्रिन्स वोरोन्त्सोव से मिलना आवश्यक है, महत्वपूर्ण कार्य है।” बाटा ने कहा।
‘‘बहुत अच्छा। हम तुम्हें उनके पास ले जायेंगे, ” पानोव बोला, ‘‘तुम और बोन्दोरेन्को इन्हे
साथ लेकर जाओ,” उसने आवदेयेव से कहा, ‘‘उन्हें ड्यूटी अफसर को सौंपना और वापस लौट आना। और पूरी तरह
सावधान रहना। इन्हें अपने आगे चलने देना।”
‘‘यह किसलिए है ? ” अपनी संगीन से धकियाते हुए
आवदेयेव बोला। एक को धकियाया और वह मृत व्यक्ति-सा बना रहा।
‘‘तुम उसे कोंचते हो, उससे कोई लाभ ? ” बान्दोरेन्को बोला,
‘‘ठीक है, तेजी से चलो।”
जब गुप्तचरों और उनके
अनुरक्षकों के कदमों की ध्वनि सुनाई देनी बंद हो गयी, पानोव और निकितिन वापस चौकी में लौट गये थे।
‘‘रात में शैतान उन्हें यहाँ किसलिए लाया था ? ” निकितिन बोला।
‘‘उनके पास कोई कारण अवश्य है, ”
पानोव
ने कहा। ‘‘देखो रोशनी फैल रही है,” उसने आगे कहा। उसने अपने ओवरकोट को फैलाया और पेड़ के सामने बैठ गया।
दो घण्टे पश्चात् आवदेयेव और
बोन्दोरेन्को लौट आए।
‘‘हाँ, तुम उन्हें सौंप आए ? ” पानोव ने पूछा।
‘‘हाँ। कर्नल अभी तक जागे हुए थे, और वे उन्हें सीधे उन्हीं के
पास ले गये थे। सफाचट सिर वाले वे लड़के कितने अच्छे थे!” आवदेयेव ने कहा, ‘‘ मैंनें उनसे अद्भुत बातचीत
की।”
‘‘हम जानते हैं कि तुम अद्भुत बातूनी हो, ” निकितिन
कटु स्वर में बोला।
‘‘सच, वे बलिकुल रूसियों जैसे हैं।
एक विवाहित है।”
‘‘तुम्हारे पत्नी है? ” मैनें पूछा।
‘‘हाँ।” उसने कहा।
‘‘कोई बच्चा ? ” मैनें पुन: पूछा।
‘‘हाँ, बच्चा है”
‘‘एक जोड़ी ?”
‘‘एक जोड़ी” उसने कहा। “हमने अच्छी गपशप की।…शानदार लड़के हैं।”
‘‘मैं शर्त लगाता हूँ, ” निकितिन ने कहा, ‘‘ तुम एक से अकेले मिलो, और वह जल्दी ही तुम्हारी आंते
निकाल देगा।”
‘‘भोर जल्दी ही होगी।” पानोव बोला।
‘‘हाँ, अब तारे फीके पड़ने लगे हैं, ” आवदेयेव ने बैठते हुए कहा।
सैनिक पुन: चुप हो गये थे।
(अनुवाद – रूपसिंह चन्देल)