बुधवार, 1 जून 2016

लेव तलस्तोय की उपन्यासिका --
        हाजी मुरात
                                                                               भाग दो

उसी रात वोजविजेन्स्क में अग्रिम छावनी से तीन सैनिक और एक वारण्ट अफसर सगीर गेट की ओर रवाना हुए। वे उस गांव से लगभग बारह मील की दूरी पर थे, जहाँ हाजी मुराद रात बिता रहा था। सैनिकों ने फर के जैकेट और टोपियाँ, कंधों पर पट्टियाँ लगे ओवर कोट और घुटनों से भी ऊँचे बूट पहन रखे थे जो उन दिनों कोकेशस में यूनीफार्म का हिस्सा हुआ करते थे। अपने हिथयारों को कंधों पर लादे वे सड़क के साथ-साथ एक फर्लांग तक गए, फिर दाहिनी ओर पत्तों से होकर सरसराते हुए बीस कदम चले, और एक टूटे चिनार के पेड़ के पास खड़े हो गए, जिसका काला तना अंधेरे में अस्पष्ट दिखाई दे रहा था। उस पेड़ के पास प्राय: एक संतरी रात्रि-रक्षक के रूप में नियुक्त रहता था।
जब वे जंगल से होकर गुजर रहे थे, पेड़ों के ऊपर दौड़ने का आभास देते चमकीले तारे वृक्षों की नंगी शाखाओं के पार हीरे जैसा चमकते हुए ठहरे हुए थे।
‘‘ईश्वर को धन्यवाद कि यह सूखा है,” वारण्ट अफसर पानोव बोला। उसने संगीन लगी अपनी लंबी राइफल उतारी और आवाज के साथ पेड़ के सामने टिका दी। सैनिकों ने भी उसका अनुसरण किया।
‘‘हाँ, मैं समझ गया, मैं उसे खो चुका हूँ, ” पानोव बुदबुदाया। “या तो मैं उसे भूल आया अथवा वह रास्ते में गिर गया।”
‘‘आप क्या खोज रहे हैं? ” एक सैनिक ने हार्दिकतापूर्वक, प्रसन्न स्वर में पूछा।
‘‘मेरा पाइप… मुझे लानत है। काश ! मैं जान पाऊँ कि वह कहाँ है।! ”
‘‘आप नली लाए हैं? ” प्रसन्न स्वर ने पूछा ।
‘‘नली … यह रही वह।”
‘‘आप उसे जमीन में गाड़ देगें? ”
‘‘क्या इरादा है? ”
“मैं उसे तुरंत बैठा दूंगा।”
गश्त के दौरान धूम्रपान सख्त वर्जित था, लेकिन यह चौकी मुश्किल से ही छुपी हुई थी। यह एक सीमा-चौकी थी जो कबीलाइयों को चोरी-छुपे तोपखाना लाने से रोकती थी, जैसा कि वे पहले करते थे और छावनी पर बमबारी किया करते थे। अंतत: अपने को तम्बाकू पीने से वंचित करने का पानोव को कोई कारण नजर नहीं आया, और उसने प्रसन्न सैनिक के प्रस्ताव पर सहमति दे दी। सैनिक ने अपनी जेब से चाकू निकाला और जमीन पर एक गड्ढा खोदने लगा। जब गड्ढा खुद गया, उसने उसे बराबर किया, नली का पाइप उस स्थान पर बैठाया, छेद में कुछ तम्बाकू रखा, उसे नीचे की ओर दबाया और सब कुछ तैयार था। दियासलाई धधकी और सैनिक के पिचके मुंह के पास एक क्षण के लिए जल उठी, क्योंकि वह पेट के बल जमीन पर लेटा था। पाइप में सीटी की-सी आवाज हुई, और पानोव ने तंबाकू जलने की रुचिकर सुगंध अनुभव की।
‘‘तुमने उसे बैठा दिया ? ” खड़े होते हुए पानोव ने पूछा।
‘‘काम ठीक ठाक हो गया।”
‘‘बहुत अच्छा किया, आवदेयेव ! एक विशिष्ट दक्ष, लौंडे, एह ? ”
आवदेयेव अपने मुंह से धुआँ बाहर छोड़ता हुआ ऊपर की ओर घूम गया, और उसने पानोव के लिए रास्ता बनाया।
पानोव पेट के बल लेट गया, अपनी आस्तीन से नली को पोछा और तम्बाकू पीने लगा। जब उसने पीना बंद किया सैनिकों ने बाते प्रारंभ कर दी।
‘‘ वे कहते हैं कि कमाण्डिंग अफसर पुन: आर्थिक संकट में फंस गया है। निश्चित ही उसने जुआ खेला होगा, ” एक सैनिक धीरे-धीरे बोला।
‘‘वह उसे वापस लौटा देगा।” पानोव बोला।
‘‘सभी जानते हैं कि वह एक अच्छा अफसर है, ” उसकी बात का समर्थन करते हुए आवदेयेव ने कहा।
‘‘मैं परवाह नहीं करता, यदि वह अच्छा अफसर है, ” पहला वक्ता भुनभुनाया, ‘‘मेरे विचार से कम्पनी का कर्तव्य है कि उससे पूछताछ करे। यदि उसने कुछ लिया है, तो उसे बताना चाहिए कि कितना, और वह उसे कब लौटाएगा।”
‘‘यह निर्णय करना कम्पनी का काम है, ” तम्बाकू पीना रोक कर पानोव ने कहा।
‘‘वह उससे भाग नहीं सकेगा, आप भी यह निश्चित तौर पर समझ सकते हैं,” आवदेयेव ने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा।
‘‘वह सब बहुत अच्छा है, लेकिन हमें रखने के लिए तो मिली जई और हमने सामान रखने की पेटी मरम्मत करवायी वसंत के लिए… पैसा चाहिए, और यदि उसने वह लिया है…।” असंतुष्ट सैनिक ने कहना जारी रखा। ‘‘यह सब कम्पनी के ऊपर है, मैंने कहा न, ” पानोव ने दोहराया। ‘‘ऐसा पहले भी घटित हुआ था। उसने जो भी लिया है वह उसे वापस लौटा देगा।”
उन दिनों काकेशस में प्रत्येक कम्पनी अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नियंत्रित करती थी। भत्ते के रूप में उसे प्रति व्यक्ति छ: रूबल पचास कोपेक प्राप्त होते थे, और वह अपने आप आपूर्ति करती थी। वह सब्जियाँ उगाती, चारागाह तैयार करती, परिवहन व्यवस्था कायम करती और अच्छी तरह पोषित घोड़ों पर विशेष गर्व करती थी। फण्ड तिजोरी में रखा जाता था, और चाबी कम्पनी कमाण्डर के पास होती थी। अपनी सहायता के लिए ऋण लेना कम्पनी कमाण्डर के लिए बार-बार की घटना हो गयी थी। इस समय भी यही घटित हुआ था, और वही सैनिकों के चर्चा का विषय था। निकितिन असंतुष्ट था और चाहता था कि हिसाब के लिए कमाण्डर को कहा जाये, लेकिन पानोव और आवदेयेव इस बात की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे।
पानोव ने जब पीना समाप्त किया, तब निकितिन पाइप की ओर मुड़ा। वह अपने ओवर कोट पर बैठ गया और पेड़ के सामने झुक गया। दल के लोग चुप हो गये थे और आवाज केवल उनके सिरों के ऊपर पेड़ों की फुनगियों की ऊंचाई पर हवा के सरसराने की थी। अचानक उन्हें हवा की सरसराहट से ऊपर श्रृंगालों का चीखना और विलखना सुनाई पड़ा।
‘‘ उन्हें लानत, ये कैसा शोरगुल कर रहे हैं।” आवदेयेव बोला।
‘‘वे तुम पर हंस रहे हैं; क्योंकि तुम्हारा चेहरा भैंगा है, ” नरम उक्र्रैनियन लहजे में तीसरे सैनिक ने कहा।
पुन: चुप्पी पसर गयी। हवा केवल पेड़ों की टहनियों को हिला रही थी, जिससे तारे कभी प्रकट होते तो कभी छुप जाते थे।
‘‘अन्तोनिच, मैं कहता हूँ,” मुस्कराते हुए आवदेयेव ने अचानक पानोव से पूछा, ‘‘आप कभी परेशान हुए ? ”
‘‘परेशान ! तुम्हारा अभिप्राय क्या है? ” पानोव ने अनिच्छापूर्वक उत्तर दिया।
‘‘मैं इस समय इतना परेशान हूँ… मात्र परेशान, कि आश्चर्य नहीं कि मैं कहीं आत्महत्या न कर लूं।”
‘‘इसे समाप्त करो।” पानोव ने कहा।
‘‘मैनें पीने में पैसे इसलिए उड़ाये, क्योंकि मैं परेशान था। मैं पीने के लिए परेशान रहता था। और मैनें सोचा, मुझे अंधाधुंध पीना है।”
‘‘नियम से मदिरा-पान करना मनुष्य को बदतर बनाता है।”
‘‘हाँ, लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ।”
‘‘गोया, तुम किस बात से परेशान हो ? ”
‘‘मैं ? मैं गृहासक्त हूँ।”
‘‘क्यों ? क्या तुम घर में बेहतर थे ? ”
‘‘हम अमीर नहीं थे, लेकिन वह एक अच्छी ज़िन्दगी थी, सुन्दर जीवन।”
और आवदेयेव पानोव को उस विषय में बताने लगा, जैसा कि वह पहले भी कई बार कर चुका था ।
‘‘भाई के बजाय मैं स्वेच्छा से सेना में भर्ती हुआ था, ” आवदेयेव ने कहा, ‘‘उसके चार बच्चे थे, जबकि मेरी अभी शादी ही हुई थी। मेरी माँ चाहती थी कि मैं सेना में जाऊं। मैनें कभी उज्र नहीं किया। मैनें सोचा, शायद अच्छे कार्यों के लिए वे मुझे याद करेंगे। इसलिए मैं जमींदार से मिलने गया। वह एक अच्छा आदमी था, हमारा जमींदार, और उसने कहा, ‘‘अच्छा मित्र, तुम जाओ। इस प्रकार भाई के बजाय मैं सेना में भर्ती हो गया।”
‘‘बहुत अच्छा।” पानोव ने कहा।
‘‘लेकिन अंतोनिच, अब आप इस पर अवश्य विश्वास करेंगें, कि मैं परेशान हूँ। यह सब इसलिए बदतर है, क्योंकि मैनें अपने भाई का स्थान लिया था। मैं अपने से कहता हूँ कि इस समय वह एक छोटा जमींदार है, जबकि मैं तंगहाली में हूँ। और मैं जितना ही इस विषय में सोचता हूँ, यह उतना ही बदतर लगता है। इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता।”
आवदेयेव रुका। ‘‘क्या हम दोबारा तम्बाकू पियेंगे? ” उसने पूछा।
‘‘हाँ, उसे ठीक करो।”
लेकिन सैनिकों को तम्बाकू पीने का आनन्द नहीं मिला। आवदेयेव अभी उठा ही था और वह पाइप ठीक करने ही वाला था, कि उन्हें हवा की आवाज के ऊपर सड़क पर चलते कदमों की आवाज सुनाई दी। पानोव ने अपनी राइफल उठा ली और निकितिन को झिटका। निकितिन उठा और उसने अपना ओवर कोट उठाया। तीसरा बोन्दोरेन्को भी उठ खड़ा हुआ।
‘‘ क्या मैं स्वप्न देख रहा था … क्या स्वप्न …!”
आवदेयेव बोन्दारेन्को पर फुफकारा, और सैनिक जड़ होकर चुपचाप सुनने का प्रयास करने लगे। जूतों पर चलते शिथिल कदम निकट आते जा रहे थे। अंधेरे में पत्तियों और सूखी टहनियों की चरमराहट साफ सुनाई दे रही थी। तभी उन्हें चेचेन की गुट्टारा भाषा में बातचीत करने की अनूठी आवाज सुनाई दी, और उन्होंने पेड़ों के बीच हल्की रोशनी में दो छायाओं को चलते देखा। एक छाया छोटी और दूसरी लंबी थी। जब वे सैनिकों के बराबर पहुंचे पानोव और उसके साथी हाथ में राइफल थामें सड़क पर आ गये।
‘‘ कौन जा रहा है ? ” पानोव चीखा।
‘‘शांतिप्रिय चेचेन, ” दोनों में से छोटे कद वाला बोला। वह बाटा था। ‘‘न बन्दूक है, न तलवार, ” अपनी ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ‘‘प्रिन्स, आप देख सकते हैं।”
लंबा व्यक्ति अपने साथी के बगल में शांत खड़ा था। उसके पास भी हथियार नहीं थे।
‘‘कर्नल से मिलने जानेवाले गुप्तचर हो सकते हैं।” पानोव ने अपने साथियों को स्पष्ट किया।
‘‘प्रिन्स वोरोन्त्सोव से मिलना आवश्यक है, महत्वपूर्ण कार्य है।” बाटा ने कहा।
‘‘बहुत अच्छा। हम तुम्हें उनके पास ले जायेंगे, ” पानोव बोला, ‘‘तुम और बोन्दोरेन्को इन्हे साथ लेकर जाओ,” उसने आवदेयेव से कहा, ‘‘उन्हें ड्यूटी अफसर को सौंपना और वापस लौट आना। और पूरी तरह सावधान रहना। इन्हें अपने आगे चलने देना।”
‘‘यह किसलिए है ? ” अपनी संगीन से धकियाते हुए आवदेयेव बोला। एक को धकियाया और वह मृत व्यक्ति-सा बना रहा।
‘‘तुम उसे कोंचते हो, उससे कोई लाभ ? ” बान्दोरेन्को बोला, ‘‘ठीक है, तेजी से चलो।”
जब गुप्तचरों और उनके अनुरक्षकों के कदमों की ध्वनि सुनाई देनी बंद हो गयी, पानोव और निकितिन वापस चौकी में लौट गये थे।
‘‘रात में शैतान उन्हें यहाँ किसलिए लाया था ? ” निकितिन बोला।
‘‘उनके पास कोई कारण अवश्य है, ” पानोव ने कहा। ‘‘देखो रोशनी फैल रही है,” उसने आगे कहा। उसने अपने ओवरकोट को फैलाया और पेड़ के सामने बैठ गया।
दो घण्टे पश्चात् आवदेयेव और बोन्दोरेन्को लौट आए।
‘‘हाँ, तुम उन्हें सौंप आए ? ” पानोव ने पूछा।
‘‘हाँ। कर्नल अभी तक जागे हुए थे, और वे उन्हें सीधे उन्हीं के पास ले गये थे। सफाचट सिर वाले वे लड़के कितने अच्छे थे!” आवदेयेव ने कहा, ‘‘ मैंनें उनसे अद्भुत बातचीत की।”
‘‘हम जानते हैं कि तुम अद्भुत बातूनी हो, ” निकितिन कटु स्वर में बोला।
‘‘सच, वे बलिकुल रूसियों जैसे हैं। एक विवाहित है।”
‘‘तुम्हारे पत्नी है? ” मैनें पूछा।
‘‘हाँ।” उसने कहा।
‘‘कोई बच्चा ? ” मैनें पुन: पूछा।
‘‘हाँ, बच्चा है”
‘‘एक जोड़ी ?”
‘‘एक जोड़ी” उसने कहा। “हमने अच्छी गपशप की।…शानदार लड़के हैं।”
‘‘मैं शर्त लगाता हूँ, ” निकितिन ने कहा, ‘‘ तुम एक से अकेले मिलो, और वह जल्दी ही तुम्हारी आंते निकाल देगा।”
‘‘भोर जल्दी ही होगी।” पानोव बोला।
‘‘हाँ, अब तारे फीके पड़ने लगे हैं, ” आवदेयेव ने बैठते हुए कहा।
सैनिक पुन: चुप हो गये थे।


अनुवाद – रूपसिंह चन्देल