गुरुवार, 18 मई 2017

लेव तलस्तोय की उपन्यासिका --
        हाजी मुरात

                                                                      भाग चार
घायल आवदेयेव को छावनी के निकासी द्वार के निकट के अस्पताल में, जो लकड़ी के एक छोटे-से मकान में था, ले जाया गया और जनरल वार्ड के एक खाली बेड पर लिटा दिया गया। वार्ड में चार मरीज थे। एक सन्निपात-ग्रस्त टायफायड का केस था, और दूसरा निस्तेज, ज्वरग्रस्त, धंसी हुई आँखें, सदैव मरोड़ उठने की आशंका से ग्रस्त और लगातार जम्हुआई लेनेवाला मरीज था । दो और थे जो तीन सप्ताह पहले हुए हमले में घायल हुए थे। एक, जो खड़ा हुआ था, हाथ में और दूसरा; जो बिस्तर पर बैठा हुआ था, कंधे में घायल था। टायफायड वाले मरीज को छोडकर शेष ने नवागन्तुक को घेर लिया और उसे लेकर आने वालों से प्रश्न करने लगे।
वे लोग कभी-कभी धुंआधार गोलीबारी करते हैं, लेकिन इस बार उन्होंनें केवल आधा दर्जन बार ही फायर की थी,”- लेकर आने वालों में से एक ने उन्हें बताया ।
भाग्य की बात है।
ओह।आवदेयेव दर्द को रोकने का प्रयास करता हुआ कराहा, जब वे उसे बिस्तर पर लेटा रहे थे। जब उन्होनें उसे लेटा दिया, उसने त्योरियाँ चढ़ाई और कराहना बंद कर दिया, लेकिन पैर के कारण बेचैनी अनुभव करता रहा। उसने घाव को अपने हाथों से पकड़ लिया और एकटक अपने सामने की ओर देखने लगा। डाक्टर आया और उन्हें आदेश दिया कि उसे औंधा पलट दें यह देखने के लिए कि क्या गोली पीछे से बाहर निकल गयी थी।
यह क्या है ?” डाक्टर ने पीठ और नितम्बों पर बने क्रास के लंबे सफेद निशान की ओर संकेत करते हुए पूछा।
सर, पुराने घाव का निशान है !कराहते हुए आवदेयेव बुदबुदाया।
उसने धन का अपव्यव किया था। उसके लिए उसे जो दण्ड दिया गया था, यह उसीका निशान था।
उन्होंने उसे पुन: पलट दिया, और डाक्टर ने सलाई से उसके पेट में गहराई तक टटोला और गोली तक पहुँच गया, लेकिन उसे निकाल नहीं सका। उसने घाव की ड्रेसिंग की और चिपकनेवाला प्लास्टर चढ़ाया, फिर चला गया। पूरे परीक्षण और घाव की ड्रेसिंग के समय आवदेयेव दांत भींचे और आँखें बंद किये लेटा रहा था। जब डाक्टर चला गया उसने आँखें खोलीं और विस्मय से चारों ओर देखा। उसकी आँखें मरीजों और अर्दली की ओर घूमीं, फिर भी उसे लगा कि वह उन्हें नहीं देख रहा है, बल्कि विस्मित कर देने वाला कुछ और ही देख रहा है।
आवदेयेव के साथी पानोव और सेरेगिन आए हुए थे। वह अचम्भित-सा उन्हें टकटकी लगाकर देखता हुआ, उसी प्रकार लेटा रहा। देर तक वह अपने मित्रों को पहचान नहीं पाया, हालांकि उसकी आँखें सीधे उन्हें ही देख रही थीं।
पीट, क्या तुम घर से कुछ मंगाना चाहते हो ?” पानोव ने पूछा।
आवदेयेव ने कोई उत्तर नहीं दिया, हालांकि वह पानोव के चेहरे की ओर ही देख रहा था।
मै पूंछ रहा हूँ, तुम घर से कुछ मंगाना चाहते हो ?” उसके ठण्डे हाथ को स्पर्श करते हुए पानोव पुन: बोला।
आवदेयेव को चेतना वापस लौटती हुई-सी प्रतीत हुई।
हैलो, अन्तोनिच।
हाँ, मैं आ गया। तुम घर से कुछ मंगाना चाहते हो ? सेरेगिन लिख देगा।
सेरेगिन,” कठिनाई से अपनी आँखें सेरेगिन की ओर घुमाते हुए आवदेयेव बोला, ”क्या तुम लिख दोगे ? तब उन्हें यह लिखो आपका बेटा पीटर मर गया । मुझे अपने भाई से ईर्ष्या थी यही बात पिछली रात मैं कह रहा था लेकिन अब मैं प्रसन्न हूँ। ईश्वर उसे सौभाग्यशाली करे। मैं उसकी खुशकिस्मती की कामना करता हूँ। मैं प्रसन्न हूँ। ऐसा ही कुछ लिख दो।
जब वह यह सब कह चुका, उसने पानोव पर एकटक दृष्टि गड़ायी और लंबी चुप्पी साध ली।
पानोव ने कोई उत्तर नहीं दिया।
तुम्हारा पाईप, तुम्हारा पाईप, मैं कहता हँ, वह तुम्हें मिल गया ?” आवदेयेव ने पूछा।
वह मेरे सामान में था।
अच्छा, अच्छा। अब मुझे एक मोमबत्ती दो। मैं मरने वाला हूँ।आवदेयेव बोला।
उसी समय पोल्तोरत्स्की उसे देखने आया।
तुम कैसा अनुभव कर रहे हो खराब ?” वह बोला।
आवदेयेव ने आँखें बंद कर लीं और सिर हिलाया। उसका दुबला चेहरा निष्प्रभ और कठोर था। उसने उत्तर नहीं दिया, लेकिन पानोव से पुन: बोला:
मुझे मोमबत्ती दो, मैं मरने वाला हूँ।
उन्होने एक मोमबत्ती उसके हाथ में रख दी, लेकिन यह सोचकर कि उसकी उंगलियाँ उसे पकड़ नहीं पायेगीं, उन्होंने मोमबत्ती उसकी उंगलियों के बीच में रखा और उसे थामे रहे। पोल्तोरत्स्की कमरे से बाहर चला गया और उसके जाने के पाँच मिनट बाद अर्दली ने आवदेयेव के हृदय के पास कान लगाया और कहा कि वह मर गया।
तिफ्लिस को जो रिपोर्ट भेजी गई उसमें आवदेयेव की मृत्यु का विवरण इस प्रकार दिया गया था- ”23 नवम्बर को कुरियन बटालियन की दो कम्पनियाँ जंगल साफ करने के लिए छावनी से गयी थीं। वृक्ष काटने वालों पर आक्रमण कर दिया। अग्रिम चौकी पर तैनात दलों ने वापस लौटना प्रारंभ कर दिया, जब कि दूसरी कम्पनी ने संगीनों से धावा बोल दिया और कबीलाइयों को खदेड़ दिया। युद्ध के दौरान हमारे दो सिपाही सामान्य रूप से घायल हुए थे और एक की मृत्यु हो गयी थी। कबीलाइयों के लगभग सौ लोग हताहत हुए थे।
-8-
जिस दिन पीटर आवदेयेव की वोज्दविजेन्स्क अस्पताल में मृत्यु हुई, उसी दिन उसका वृद्ध पिता, भाभी और उसकी जवान बेटी बर्फ़ जमे खलिहान में जई गाह रहे थे। शाम को बहुत अधिक बर्फ़ गिरी थी, और कुछ ही देर में जमकर वह सख्त हो गयी थी। वृद्ध व्यक्ति मुर्गे की तीसरी बांग पर ही जाग गया था, और, तुषाराच्छन्न खिड़की से चाँद की चटख रोशनी देख, उसने अंगीठी बुझाई, जूते, फरकोट और हैट पहने और खलिहान की ओर चल पड़ा था। उसने वहाँ दो घण्टे तक काम किया, फिर झोपड़ी में लौटा और बेटा और महिलाओं को जगाया था। जब औरतें और लड़की बाहर आयीं; फर्श साफ थी, लकड़ी का एक बेलचा मुलायम सफेद बर्फ़ में सीधा खड़ा हुआ था, जिसके बगल में एक झाड़ू रखी हुई थी, जिसकी मूठ ऊपर की ओर थी और साफ फर्श पर जई के पूले एक के बाद एक दो कतारों में रखे हुए थे। उन्होंने मूसल उठाए और तीन समान्तर प्रहारों के लय से गाहना प्रारंभ कर दिया था। बूढ़ा भारी मूसल का प्रयोग कर पुआल को कुचल रहा था। उसकी पोती पूले के ऊपरी हिस्से को संतुलित ढंग से कूट रही थी और उसकी पुत्रवधू उन्हें उलट रही थी।
चाँद अस्त हो चुका था और प्रकाश फैलने लगा था। उनका काम समाप्त होने वाला ही था जब बड़ा बेटा आकिम हाथ बटाने के लिए आया।
इधर उधर समय व्यर्थ क्यों कर रहा है?” उसका पिता काम रोक कर और मूसल के सहारे खड़ा होकर उस पर चिल्लाया।
, ”मुझे घोड़ों को खरहरा करना था।
घोड़ों को खरहरा करना था,” बूढ़े ने तिरस्कृत भाव से दोहराया। तुम्हारी माँ उन्हें खरहारा कर देगी। एक मूसल ले ले। तुम नशेबाज वीभत्स रूप से मोटा गये हो।
मैं आपसे अधिक नहीं पीता,” बेटा बुदबुदाया।
बूढ़ा क्रोधित हो उठा और कूटना चूक गया। वह क्या है?” उसने धमकी भरे स्वर में पूछा।
बेटे ने चुपचाप मूसल उठा लिया और काम नयी लय के साथ प्रारंभ हो गया, ”ट्रैपटापाट्रैपट्रैपबूढ़ा सबके अंत में अपने भारी मूसल से चोट करता था।
उसकी ओर देखो, उसकी गर्दन एक भेंड़ की भाँति मोटी हो गयी है। मुझे देखो, मेरी पतलूनें नहीं ठहर पातीं।बूढ़ा बुदबुदाया, कूटना चूक गया और उसका मूसल हवा में लहराया जिससे कूटने की लय बनी रही।
उन्होंने पूले की पंक्ति समाप्त कर दी और महिलाओं ने पांचे से मुआल समेटना शुरू कर दिया।
पीटर मूर्ख था जिसने तेरा स्थान ग्रहण किया। उन्होंने फौज में तेरे स्थान पर उस मूर्ख को पीटा होगा, और घर के काम में वह तुझसे पाँच गुना योग्य था।
इतना पर्याप्त है, दादा,” उसकी पुत्रवधू टूटे गुच्छों को उठाती हुई बोली।
खाने वाले तुम्हारे छ: मुँह हैं और तुममें से कोई एक दिन भी काम नहीं करता। जबकि पीटर दो लोगों के बराबर अकेला काम करता था, किसी लोकोक्ति की भाँति नहीं
बूढ़े की पत्नी बाड़े की ओर के रास्ते से आयी। उसने फीते से सख्त बंधी हुई ऊनी पतलून पहन रखी थी और उसके नये जूतों के नीचे बर्फ़ चरमरा रही थी। आदमी लोग पांचे से बिना ओसाए आनाज को एक ढेर में समेट रहे थे और औरतें उसे उठा रही थीं।
कारिन्दे ने बुलाया है। वह चाहता है कि सभी जमींदार के लिए ईंटें ढोयें।वृद्धा ने कहा, ”मैंनें तुम्हारा लंच बांध दिया है। क्या तुम अब जाओगे?”
बहुत अच्छा । चितकबरे घोड़े को जोतो और जाओ,” बूढ़े ने आकिम से कहा। और ठीक ढंग से व्यवहार करना, अन्यथा पिछली बार की भाँति तुम मुझ पर दोष मढ़ दोगे। पीटर के विषय में सोचो, वह तुम्हारे लिए एक उदाहरण है।
जब वह घर पर था वह उसे कोसता था,” आकिम भुनभुनाया, ”और अब वह चला गया है तो वह मेरी ओर मुड़ गया है।
क्योंकि तुम इसी योग्य हो,” उसकी माँ ने उसी प्रकार क्रोधित होते हुए कहा। पीटर से तुम्हारी कोई तुलना नहीं है।
बहुत अच्छा, बहुत अच्छा,” आकिम बोला।
नि:संदेह, बहुत अच्छा। तुमने फसल का पैसा शराब पीने में उड़ा दिया, और अब तुम बहुत अच्छाकहते हो।
पुरानी खरोचों को याद करना क्या अच्छा है? ” बहू बोली।
पिता और पुत्र के बीच झगड़ा होना पुरानी बात थी। पीटर को सेना में बुलाए जाने के तुरन्त बाद से ही ऐसा हो रहा था। बूढ़े ने तभी अनुभव किया था कि उसने खराब समझौता किया था। यह सही था कि नियमानुसार, जैसा कि बूढ़े ने उसे समझा था, बिना बच्चों वाले आदमी को परिवार वाले के लिए सेना में भर्ती हो जाना उसका कर्तव्य है। आकिम के चार बच्चे हैं, जबकि पीटर के एक भी नहीं, लेकिन पीटर पिता की भाँति एक कुशल कारीगर था : दक्ष, बुद्धिमान, मजबूत और कठोर परिश्रमी। वह पूरे समय काम करता था। काम कर रहे लोगों के पास से गुजरने पर, उनकी सहायता के लिए वह तुरंत हाथ बढ़ायेगा, जैसा कि बूढ़ा किया करता था। वह राई की कई जोड़ी कतारों को काटकर बोझ बांध देगा, एक पेड़ गिरा देगा या ईंधन की लकड़ियाँ काटकर गट्ठर बना देगा। उसे खोने का बूढ़े को गम था, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था। सेना की अनिवार्य भर्ती मृत्यु की भाँति थी। एक सैनिक शरीर के एक कटे अंग की भाँति था, और उसे याद करना या उसकी चिन्ता करना व्यर्थ था। केवल कभी-कभी, बड़े भाई पर अकुंश के लिए बूढ़ा उसका जिक्र कर दिया करता था, जैसाकि उसने अभी किया था। उसकी माँ प्राय: अपने छोटे बेटे के विषय में सोचती थी और एक वर्ष से अधिक समय से अपने पति से पीटर को पैसे भेजने के लिए प्रार्थना करती आ रही थी। लेकिन बूढ़ा अनसुना करता रहा था।
आवदेयेव का घर समृद्ध था, और बूढ़े ने काफी धन संग्रह कर रखा था, लेकिन अपनी बचत को वह किसी काम के लिए भी नहीं छूता था। इस समय,जब वृद्धा ने छोटे बेटे के विषय में बात करते हुए उसे सुना, उसने निश्चय किया कि जब वे जई बेच लेगें, वह उससे पुन:, यदि अधिक नहीं, तो एक रूबल ही भेजने के लिए कहेगी। युवतियों के जमींदार के यहाँ काम करने के लिए चली जाने के बाद जब वह बूढ़े के साथ अकेली रह गयी उसने जई की बेच में से पीटर को एक रूबल भेजने के लिए पति को राजी कर लिया। इस प्रकार ओसाई हुई जई के ढेर से जब बारह चौथाई जई तीन स्लेजों में चादरों में भर दी गयी और चादरों को सावधानीपूर्वक लकड़ी की खूंटियों से कसकर बांध दिया गया, उसने बूढ़े को एक पत्र दिया जिसे उसके लिए चर्च के चौकीदार ने लिखा था और बूढ़े ने वायदा किया कि कस्बे में पहुंचकर वह उसे एक रूबल के साथ डाक में डाल देगा।
नया फरकोट, कुरता और साफ-सफेद ऊनी पतलून पहनकर, बूढ़े ने पत्र लिया, और उसे अपने पर्स में रख लिया। आगेवाली स्लेज पर बैठकर उसने प्रार्थना की और कस्बे के लिए चल पड़ा। उसका पोता पीछे की स्लेज पर बैठा था। कस्बे में बूढ़े ने एक दरबान से अपने लिए पत्र पढ़ देने का अनुरोध किया, और बहुत प्रसन्नतापूर्वक निकट होकर पत्र सुनता रहा।
पीटर की माँ ने पत्र का प्रारंभ आशीर्वाद देते हुए किया था। फिर सभी की ओर से शुभ कामनाएं लिखवायी थीं। उसके पश्चात् यह समाचार था कि, ”अक्जीनिया (पीटर की पत्नी) ने उनके साथ रहने से इन्कार कर दिया था और नौकरी में चली गयी थी। हमने सुना है कि वह अच्छा कर रही है और एक ईमानदार जीवन जी रही है।रूबल रखने की बात का भी उल्लेख था और दुखी हृदया बूढ़ी औरत ने आँखों में आंसू भरकर चर्च के चौकीदार को पुनष्च उसकी ओर से शब्द-दर शब्द आगे लिखने का अनुरोध किया था।
, मेरे प्यारे बच्चे, मेरे प्रिय पेन्नयूषा तुम्हारे लिए दुखी मेरी आँखों से किस प्रकार आंसू बहते रहते हैं। मेरी आँखों के चमकते सूरज, किसने तुम्हे मुझसे विलग किया?” यहाँ बूढ़ी औरत ने आह भरी थी, रोयी थी और कहा था, ”मेरे प्यारे, इतना ही पर्याप्त होगा।
पीटर के भाग्य में यह समाचार प्राप्त करना नहीं था कि उसकी पत्नी घर छोड़ गयी थी, या रूबल या उसकी माँ के आखिरी शब्द। इस प्रकार यह सब पत्र में ही बना रहा। पत्र और पैसे इस समाचार के साथ लौटा दिये गये कि, ”जार, पितृभूमि, और धार्मिक निष्ठा की रक्षा करता हुआ पीटर युद्ध में मारा गया।इस प्रकार फौजी क्लर्क ने लिख भेजा था।
जब वृद्धा को यह समाचार प्राप्त हुआ वह क्षणभर के लिए रोयी थी, और फिर काम पर चली गयी थी। अगले रविवार वह चर्च गयी थी, अंतिम संस्कार किया था, पीटर का नाम मृतकों की स्मरणिका में दर्ज किया था और ईश्वर के सेवक पीटर की स्मृति में पूजा की रोटी के टुकड़े साधुजनों में बांटे थे।
अपने प्रिय पति की मृत्यु पर अक्जीनिया भी रोयी थी, जिसके साथ उसने केवल एक वर्ष का संक्षिप्त जीवन व्यतीत किया था। उसने अपने पति और अपनी उजड़ चुकी जिन्दगी, दोनों के लिए ही मातम मनाया था। उसके शोक ने उसे पीटर के सुनहरे घुंघराले बाल, अपने प्रति उसके प्यार और पितृहीन इवान के साथ अपने पिछले कठिन जीवन की याद दिला दी थी और इसके लिए उसने पीटर को ही दोषी ठहराया था जो अजनबियों के बीच गृहविहीन उस दुखी महिला की अपेक्षा अपने भाई की अधिक चिन्ता करता था।

लेकिन अपने हृदय की गहराई में वह पीटर की मृत्यु से प्रसन्न थी। वह कारिन्दा द्वारा पुन: गर्भवती थी जिसके साथ वह रहती थी, और अब कोई उसे दोष नहीं दे सकता था। अब कारिन्दा उससे विवाह कर सकता था, जैसा कि उसे प्यार करते समय उसने उससे वायदा किया था।
अनुवाद – रूपसिंह चन्देल
लेव तलस्तोय की उपन्यासिका --
        हाजी मुरात

                                                                      भाग तीन

भोर के समय, जब अभी अंधेरा ही था, पोल्तोरत्स्की की कमान में कुल्हाडि़यों से लैस दो कम्पनियों ने कतारबद्ध संतरियों के पहरे में शगीर गेट के बाहर पाँच मील जाने के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने प्रकाश होते ही जंगल काटना प्रारंभ कर दिया। आठ बजे के लगभग कोहरा, जिसमें सीत्कारती और चिटखकर जलती आद्र टहनियों का सुगन्धित धुआँ मिश्रित हो गया था, छंटने लगा था। लकड़ी काटने वाले जो पहले पाँच गज तक भी नहीं देख सकते थे और एक दूसरे को कोहरे में केवल सुन ही पा रहे थे, अब उन्हें आग और पेड़ों से ढके जंगल का रास्ता साफ दिखाई देने लग था। कोहरे में सूर्य एक चमकदार बिन्दु की भाँति रुक-रुककर प्रकट हो रहा था और छुप रहा था। जंगल के एक खुले स्थान में सड़क से कुछ दूर कुछ लोगों का एक दल ड्रमों पर बैठा हुआ था। उनमें पोल्तोरत्स्की और उसका अधीनस्थ तिखोनोव, तीसरी कम्पनी के दो अफसर और द्वन्द्व युद्धाभ्यास के दौरान किसी त्रुटि के कारण कार्यमुक्त हो चुका गारद रेजीमेण्ट का एक पूर्व सैनिक, संचार कोर में पोल्तोरत्स्की का पुराना साथी बैरन फ्रेशर था। सैण्डविच की लपेटन, सिगरेट के टुकड़े और खाली बोतलें उनके चारों ओर छितराये हुए थे। उन्होंने वोदका और स्नैक ली थी और स्टाउट‘ (एक प्रकार की काली बियर) पी रहे थे। ढोल बजाने वाला तीसरी बोतल खोल रहा था। पोल्तोरत्स्की, यद्यपि कम सोया था, पर प्रसन्न और चिन्तामुक्त मन:स्थिति में था, जैसा कि सदैव अपने आसपास खतरा होने पर वह अपने सैनिकों और साथियों के बीच हुआ करता था।
अधिकारी उन दिनों चर्चा का विषय बने हुए जनरल स्लेप्स्तोव की मृत्यु पर उत्तेजनापूर्ण वार्तालाप कर रहे थे। उस मृत्यु में स्लेप्स्तोव के जीवनकाल के महत्वपूर्ण क्षणों, उसके अंत और उसकी मृत्यु के कारणों पर किसी ने विचार नहीं किया। उन्होंने सिर्फ़ एक साहसी अफसर की वीरता पर चर्चा की, जिसने अपनी तलवार से कबाइलियों पर आक्रमण किया था और निर्भीकतापूर्वक उन्हें काट गिराया था।
यद्यपि सभी अधिकारी, विशेषरूप से जिन्हें व्यावहारिक अनुभव था यह जानते थे कि न तो काकेशस में और न हीं कहीं अन्यत्र आमने-सामने तलवारों से युद्ध होता है जैसा कि प्राय: कल्पना की जाती थी और बताया जाता था (अगर ऐसा हुआ भी तो वह भागने वाले के साथ ही होता था जिसे या तो तलवार से काट दिया जाता था या संगीन से घायल कर दिया जाता था)। आपने-सामने लड़ने की कहानी को जो अफसर स्वीकार करते थे वे शांत गर्व और प्रसन्नता से प्रेरित होकर, ड्र्मों पर बैठकर कुछ दिलेरी से, शेष संकोच से तम्बाकू पीते, शराब पीते और मजाक करते हुए उसकी चर्चा किया करते थे। वे मृत्यु की किंचित भी चिन्ता न करते थे, जो उन्हें किसी भी क्षण घेर सकती थी, जैसा कि स्लेप्स्तोव को आ घेरा था। और सचमुच, वार्तालाप में जिस समय वे अपनी अपेक्षा को प्रमाणित करने वाले थे, उस समय राइफल की गोली की एक तीव्र आवाज से उनकी बातचीत बाधित हुई जो सड़क के बायीं ओर तेज कड़क के साथ पुन: सुनाई दी थी। गोली सनसनाती हुई कोहरा मिश्रित हवा को चीरती हुई तेज आवाज के साथ एक पेड़ में जा लगी थी। सैनिकों की राइफलों से भी तेज आवाज करती अनेकों गोलियों ने शत्रु की गोलीबारी का उत्तर दिया था।
ओहपोल्तोरत्स्की प्रसन्नतापूर्वक चिल्लाया, ‘‘वह सीमा की ओर से आयी थी। क्या वह उधर से नहीं आयी थी? कोस्त्या, तुम्हारा भाग्यउसने फ्रेशर से कहा, “तुम अपनी कम्पनी में चले जाओ। एक मिनट में हम एक शानदार युद्ध लड़ेंगे। हम एक सैन्य-प्रदर्शन प्रस्तुत करेगें।
बरखास्त बैरन उछलकर खड़ा हुआ और धुंए में तेजी से अपनी कम्पनी की ओर बढ़ा। पोल्तोरत्स्की अपना छोटा चित्तकबरा घोड़ा ले आया, उस पर सवार हुआ, अपनी कम्पनी में पहुंचा और गोली चलने की दिशा में सीमा की ओर उसका नेतृत्व किया। सीमा रेखा जंगल के किनारे हल्के ढलान वाली छोटी घाटी के सामने थी। हवा जंगल की ओर बह रही थी, और न केवल घाटी की ढलान बल्कि उससे बहुत दूर तक साफ दिखाई दे रहा था।
पोल्तोरत्स्की जब सीमा के निकट पहुंचा, सूर्य कोहरे के बाहर झांकता दिखाई पड़ा। घाटी से दूर; विरल जंगल में वह पुन: प्रकट हुआ। वहाँ से एक फर्लांग की दूरी पर उसने अनेक घुड़सवारों को देखा। वे चेचेन थे जो हाजी मुराद का पीछा करते हुए वहाँ तक आ पहंचे थे और अब रूसी सेना के समक्ष उसको आत्म-समर्पण करते देखना चाहते थे। उनमें से एक ने सीमा रेखा की ओर फायर किया था। सैनिकों ने उसका प्रत्युत्तर दिया था। चेचेन रुक गये थे और फायरिंग बंद हो गयी थी। पोल्तोरत्स्की अपनी कम्पनी के पास पहुँचा और उसने फायर शुरू करने का आदेश दिया। और जैसे ही आदेश दिया गया एक साथ सैनिकों की गोलियाँ कोहरे को भेदती रमणीय शोर करती हुई सनसनाने लगीं। सैनिक इस मनोरंजन का आनंद ले रहे थे। वे उन्मत्त हो रायफलें लोडकर गोलियों की बौछार-दर-बौछार कर रहे थे। प्रकट रूप से चेचेन बहुत क्रुद्ध दिखे। सैनिकों पर लगातार गोलियाँ दागते हुए वे सरपट दौड़ रहे थे। उनकी गोली से एक सैनिक घायल हो गया। यह सैनिक वही आवदेयेव था, जो रात में पहरेदारी कर रहा था। जब उसके साथी उसके निकट पहुँचे, वह दोनों हाथों से अपने पेट का घाव पकड़े मुँह के बल लेटा हुआ था। वह लगातार कांप रहा था और धीमे स्वर में कराह रहा था।

मैं अभी अपनी राइफल लोड कर ही रहा था कि मैनें एक धमाका सुना,” उसके पास खड़ा सैनिक बोला, “मैनें मुड़कर देखा और इनके हाथ से रायफल गिर गयी थी।
आवदेयेव पोल्तोरत्स्की की कम्पनी में था। सैनिकों के एक समूह को एकत्रित देखकर पोल्तोरत्स्की वहाँ आ गया।
क्यों, तुम्हे चोट लगी है ? कहॉं ?” वह बोला।
आवदेयेव ने उत्तर नहीं दिया ।
सर, मैं अभी अपनी राइफल लोड कर ही रहा था,,” सैनिक ने कहा जो उसके पास खड़ा था, “कि मैनें एक धमाका सुना। मैनें मुड़कर देखा और इनके हाथ से रायफल गिर गयी थी।
टटटट…,” पोल्तोरत्स्की ने अपनी जीभ टटकारी। अच्छा, आवदेयेव, क्या दर्द अधिक हो रहा है ?”
सर, अधिक चोट नहीं है, लेकिन मैं चल नहीं सकता। सर, मुझे ड्रिंक करना अच्छा लगेगा।
उन्हें थोड़ी-सी वोदका मिली जो सैनिकों ने काकेशस में पी थी। पानोव ने निष्ठुरता से त्योरियाँ चढ़ाते हुए आवदेयेव को ढक्कनभर शराब दी। आवदेयेव ने एक घूंट ली, लेकिन तुरंत ढक्कन दूर हटा दिया।
इसे गिराओगे नहीं,” उसने कहा, “तुम इसे स्वयं पी लो।
पानोव ने वोदका समाप्त कर दी। आवदेयेव ने उठने का प्रयास किया और एक बार फिर ढह गिरा। वे एक ओवरकोट ले आए और उसे उसके ऊपर डाल दिया।
‘‘सर, कर्नल साहब आ रहे हैं।सार्जेंट मेजर ने पोल्तोरत्स्की से कहा।
‘‘बहुत अच्छा, उनके लिए तैयार हो जाओ, ” पोल्तोरत्स्की बोला और अपना चाबुक फटकारा। वह वोरोन्त्सोव से मिलने के लिए तेजी से चल पड़ा।
वोरोन्त्सोव एक अंग्रेजी नस्ल के पांगर स्टैलियन पर सवार था। एक कज्जाक रेजीमेण्टल एड्जूटेण्ट, और एक चेचेन दुभाषिया उसके साथ थे।
यहाँ क्या घटित हुआ ?” उसने पोल्तोरत्स्की से पूछा।
उनका एक दल निकलकर एकदम बाहर आया और उसने हरावल पर आक्रमण कर दिया।
हूँ, मैं समझता हूँ कि यह सब तुमने प्रारंभ किया !
नहीं, मैनें नहीं, प्रिन्स, ” पोल्तोरत्स्की मुस्कराता हुआ बोला, “वे ही हम पर चढ़ आये थे।
मैनें सुना, यहाँ कोई व्यक्ति घायल हुआ है ?”
हाँ, यह खेदजनक है। वह एक अच्छा सैनिक है।
गंभीररूप से ?”
मैं ऐसा ही सोचता हूँ, पेट में…”
और आप जानते हैं मैं कहाँ जा रहा हूँ ?” वोरोन्त्सोव ने पूछा।
नहीं।
सच, तुम अनुमान नहीं लगा सकते ?”
नहीं।
हाज़ी मुराद आया है और हमसे लगभग मिलने ही वाला है।
असम्भव।
कल उसका एक प्रतिनिधि आया था,” वोरोन्त्सोव संतोषजनक मुस्कान को दबाने का भरसक प्रयत्न करता हुआ बोला, “वह इस समय शालिया के जंगल में हमारी प्रतीक्षा कर रहा होगा, इसलिए अपने रायफलधारियों को जंगल में तैनात करो और मुझे रिपोर्ट दो।
जी, सर।सैल्यूट मारते हुए पोल्तोरत्स्की बोला, और अपनी कम्पनी की ओर चला गया। उसने अपने दाहिनी ओर सैनिकों को पंक्तिबद्ध किया और सार्जेंट मेजर को बायीं ओर पंक्तिबद्ध करने का आदेश दिया। इसी बीच सैनिक घायल आवदेयेव को छावनी वापस ले गये।
पोल्तोरत्स्की वारोन्त्सोव के पास वापस जाते हुए अभी रास्ते में ही था कि उसे पीछे की ओर से आते हुए कुछ घुड़सवारों की झलक दिखाई दी। वह रुक गया और उनकी प्रतीक्षा करने लगा।
आगे, सफेद ट्यूनिक, फर का टोप और पगड़ी पहने हुए, स्वर्ण जटित रायफल लिए प्रभावशली व्यक्तित्ववाला एक व्यक्ति, सफेद घोड़े पर सवार था। यह हाजी मुराद था। वह पोल्तोरत्स्की के पास आया और तातारी में उससे कुछ कहा। पोल्तोरत्स्की ने त्योरियॉं चढ़ाईं, कुछ न समझ पाने का भाव प्रदर्शित करते हुए अपनी बाहें फैलायीं और मुस्कराया। हाजी मुराद भी उत्तर में इस ढंग से मुस्कराया कि पोल्तोरत्स्की को उसकी मुस्कराहट में एक बच्चे जैसी निर्दोषता दिखी। पोल्तोरत्स्की को किंचित् भी यह आशा न थी कि पहाड़ों का यह पुनर्संदिग्ध व्यक्ति ऐसा होगा। उसने उसकी एक निर्दय, रूखे और भयावह व्यक्ति के रूप में कल्पना की थी और यहाँ एक अति सरल व्यक्ति उपस्थित था जो इस प्रकार से मुस्करा रहा था मानो वह पुराना मित्र था। उसमें केवल एक ही विशिष्टता थी, वह थी उसकी बड़ी-बड़ी आँखें जो दूसरे लोगों की आँखों में सतर्क, बेधक और शांतभाव से दखती थीं।
हाजी मुराद अपने साथ चार लोगों को लेकर आया था। उनमें से एक खान महोमा था, जो पिछली रात वोरोन्त्सोव से मिला था। वह गुलाबी गोल चेहरे वाला व्यक्ति था। उसकी खुली आंखें काली और चमकदार थीं और चेहरे पर मुस्कराहट और प्रसन्नता का भाव था। दूसरा, स्थूल, सांवला, घनी भौहों वाला व्यक्ति था। वह हनेफी था, एक तवलियन, जो हाजी मुराद का प्रबंधक था। वह सामग्री से भरे पिट्ठू बैग लादे घोड़े पर चल रहा था। दल के दो लोग विशेषरूप से बाहर रुके हुए थे। उनमें से एक पतली कमर, चौड़े कंधे,सुन्दर दाढ़ी, बड़ी और खुली आँखों वाला खूबसूरत नौजवान एल्दार था। दूसरा व्यक्ति एक आँख से काना, बिना भौहों या बरौनियों वाला, लाल दाढ़ी और नाक के आर-पार चेहरे तक फैले घाव के निशान वाला व्यक्ति था। वह चेचेन हमज़ालो था।
पोल्तोरत्स्की ने हाजी मुराद से वोरोन्त्सोव की ओर इशारा किया जो सड़क पर दिखाई दिया था। हाजी मुराद उसके निकट पहुंचा और अपना दाहिना हाथ अपने सीने पर रखकर तातारी में कुछ कहा और रुक गया। चेचेन दुभाषिये ने उसके शब्दों का अनुवाद किया।
मैनें स्वयं को जा़र के समक्ष आत्म-समर्पित कर दिया है,” वह कहता है मैं चाहता हूँ,” वह कहता है, ‘‘उनकी सेवा करूं। मैं बहुत पहले से ऐसा करना चाहता था। लेकिन शमील ने मुझे छोड़ा ही नहीं।
दुभाषिये को सुनने के बाद वोरोन्त्सोव ने हिरण की खाल वाले दस्ताने में से अपना हाथ बाहर निकाल हाजी मुराद की ओर बढ़ाया। हाजी मुराद ने हाथ की ओर देखा और एक सेकेण्ड के लिए संकुचित हुआ, लेकिन फिर दृढ़ता से हाथ मिलाया और पहले दुभाषिये की ओर फिर वोरोन्त्सोव की ओर देखता हुआ पुन: बोला -
वह कहता है कि वह आपके अतिरिक्त किसी अन्य के समक्ष आत्म-समर्पण नहीं करना चाहता, क्योंकि आप सरदार के पुत्र हैं। वह आपका बहुत आदर करता है।
वोरोन्त्सोव ने धन्यवाद प्रकट करते हुए सिर हिलाया। हाजी मुराद ने अपने दल की ओर इशारा करते हुए आगे कुछ और कहा।

वह कहता है कि ये लोग उसके अंगरक्षक हैं और उसीकी भाँति रूसियों की सेवा करेंगें।
वोरोन्त्सोव ने मुड़कर उनकी ओर देखा और उनकी ओर भी सिर हिलाया।
काली और खुली आँखों वाले खान महोमा ने भी सिर हिलाते हुए स्पष्ट रूप से उत्तर में हंसकर कुछ कहा, क्योंकि सांवला अवार मुसकराहट में अपने धवल दांतों को चमकने से नहीं रोक पाया। हमज़ालो ने अपनी एक लाल आँख से क्षणभर के लिए वोरोन्त्सोव की ओर देखा, फिर एक बार और अपने घोड़े के कानों पर अपनी दृष्टि स्थिर कर एकटक देखने लगा।
जब वोरोन्त्सोव और हाजी मुराद, अपने दल के साथ छावनी की ओर वापस गये, सैनिक पंक्ति से बाहर आ घेरा बना खड़े हो गये और अपने-अपने अनुमान लगाने लगे।
इस शैतान ने कितने लोगों की हत्याएं की, और देखो, वे उसके साथ लार्ड जैसा व्यवहार करने जा रहे हैं।
देखो, अल्पकाल में ही वह शैम्मूल का शीर्ष कमाण्डर बन गया था। जरा अब उसे देखो।
स्वागतम, यह तुम्हारे सोचने का अपना ढंग है, लेकिन वह एक हीरोएक भद्रव्यक्तिहै।
उस लाल बालों वाले, और भेंगीं आँखों वाले शैतान को तो देखों।
सुअर होगा।
वे विशेषरूप से लाल बालोंवाले व्यक्ति पर ध्यान केन्द्रित कर रहे थे।
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जहाँ जंगल की कटाई प्रगति पर थी, सैनिक हाजी मुराद को एक नजर देखने के लिए दौड़कर सड़क के निकट तक आ गये थे। एक अधिकारी उन पर चीखा, लेकिन वोरोन्त्सोव ने उसे रोक दिया।
उन्हें अपने पुराने साथी को देख लेने दो। तुम जानते हो यह कौन है ?” वोरोन्त्सोव ने अंग्रेजी लहजे में धीरे से शब्द उच्चारित करते हुए बिल्कुल पास वाले सैनिकों से पूछा।
नहीं हुजूर, हमें कोई जानकारी नहीं है।
हाजी मुराद, तुम लोगों ने उसके विषय में सुना है ?”
हाँ, हुजूर, हमने उसे अनेकों बार हराया था।
‘‘उसके साथ एक छोटा दल भी आया है।
‘‘बहुत अच्छा, हुजूर,” सैनिक ने उत्तर दिया। वह इस बात से प्रसन्न था कि अपने प्रधान से बात करने में वह सफल रहा था।
हाजी मुराद ने अनुमान लगाया कि वे उसके विषय में ही बातें कर रहे थे, और एक हल्की मुस्कान उसकी आँखों में चमक गयी थी। वोरोन्त्सोव हृदय में अच्छा भाव लिए छावनी वापस लौट आया था।
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वोरोन्त्सोव इस बात से बहुत प्रसन्न था कि शमील के बाद रूस के सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली शत्रु को प्रलोभित करने में, कोई अन्य नहीं, बल्कि वह सफल रहा था। केवल एक ही रोड़ा था। वह था वोजविजेन्स्क में फौजी कमाण्डर, जनरल मिलर जकोमेल्स्की, और सच कहा जाये तो पूरा मामला उसके ही माध्यम से संचालित होना चाहिए था। वोरोन्त्सोव उसे बिना सूचित किये शुरू से अंत तक कार्यवाई करता रहा था, और इस बात की अप्रिय प्रतिक्रिया संभव थी। इस विचार से वोरोन्त्सोव की प्रसन्नता कुछ देर के लिए मेघाच्छन्न हुई।
जब वोरोन्त्सोव घर पहुंचा, उसने हाजी मुराद के अगंरक्षकों को क्षेत्रीय कमाण्डर के सुपुर्द किया और हाजी मुराद को अपने आवास में ले गया।
प्रिन्सेज मेरी वसीलीव्ना ने हाजी मुराद का ड्राइंग-रूम में स्वागत किया। उसने सुरुचिपूर्ण ढंग से कपड़े पहन रखे थे और मुस्करा रही थी और उसका छः वर्षीय खूबसूरत पुत्र उसके साथ था। हाजी मुराद ने अपने हाथों से अपनी छाती दबायी और दुभाषिये के माध्यम से शिष्टाचार प्रदर्शित करते हुए कहा, कि वह अपने को प्रिन्स का मित्र मानता है। चूंकि उन्होंने अपने घर में उसका स्वागत किया है, इसलिए मित्र का परिवार उसके लिए उतना ही क़ाबिले अदब ( पूज्य ) है जितना कि स्वयं मित्र। मेरी वसीलीव्ना को हाजी मुराद की उपस्थिति और उसका व्यवहार पसंद आया। वास्तविकता यह थी कि उसने उसके प्रति अधिक अनुग्रह दिखाते हुए पहले से ही प्रवृत्त अपना लंबा गोरा हाथ जब उसकी ओर बढ़ाया था तब हाजी मुराद खांसने लगा था और लज्जारुण हो उठा था। मेरी वसीलीव्ना ने उससे बैठने का आग्रह किया और पूछा कि क्या वह कॉफी पियेगा, और उसे कॉफी सर्व किये जाने का आदेश दिया। लेकिन हाजी मुराद ने इंकार कर दिया। वह बहुत मामूली-सी रशियन समझ लेता था, लेकिन उसे बोल नहीं सकता था, और जब वह उसे समझ नहीं पाता था, मुस्करा देता था। उसकी मुस्कान ने मेरी वसीलीव्ना को मुग्ध कर दिया था, जैसा कि पोल्तोरत्स्की ने किया था। मेरी वसीलीव्ना का घुंघराले बालों और तेज आँखों वाला पुत्र, जिसे वह बुल्का बुलाती थी, माँ के बगल में खड़ा, निर्निमेष हाजी मुराद की ओर दे।
हाजी मुराद को अपनी पत्नी के पास छोड़कर वोरोन्त्सोव हाजी मुराद के आत्म-समर्पण की रपट तैयार करके मुख्यालय भेजने की व्यवस्था करने के लिए कार्यालय चला गया। उसने एक रपट ग्रोज्नी में लेफ्ट फ्लैंकके कमाण्डर जनरल कोज्लोवस्की को लिखी, और एक पत्र अपने पिता को लिखा, और इस बात से चिन्तित होता हुआ वह जल्दी ही घर लौट आया कि उसकी पत्नी इस बात से नाराज हो रही होगी कि वह एक अनजान और खतरनाक व्यक्ति को उसके पास छोड़ गया था, जिसका एक ओर नाराज होने का अवसर दिये बिना आतिथ्य करना था तथा दूसरी ओर अतिरिक्त मित्रता भी प्रदर्शित करनी थी। लेकिन उसका भय आधारहीन था। हाजी मुराद वोरोनत्सोव के सौतेले पुत्र बुल्का को घुटने पर बैठाये एक कुर्सी पर बैठा हुआ मेरी वसीलीव्ना की किसी हास्य टिप्पणी के दुभाषिये द्वारा किये गये अनुवाद को सुनकर एकाग्रतापूर्वक सिर झुका रहा था। मेरी वसीलीव्ना कह रही थी कि यदि उसने अपने मित्रों को वह सब दे दिया जिसकी वे प्रशंसा करते थे तो उसे शीघ्र ही अदम की भाँति रहना होगा।
प्रिन्स के प्रवेश करते ही हाजी मुराद ने बुल्का को नीचे उतार दिया, जो उसके घुटने से उतरकर चकित था और रुष्ट होकर खड़ा हो गया था। उसके चेहरे का प्रसन्न भाव तुरंत कठोरता और गंभीरता में बदल गया था। हाजी मुराद तभी बैठा जब वोरोन्त्सोव ने सीट ग्रहण कर ली। बातचीत जारी रखते उसने मेरी वसीलीव्ना की टिप्पणी का उत्तर देते हुए कहा कि यह उसके दस्तूर में है कि एक मित्र जो कुछ भी पसंद करे वह उसे अवश्य दे दी जाये।
आपका पुत्र मेरा मित्र है,” उसने बुल्का के बालों को सहलाते हुए रशियन में कहा। बुल्का पुनः उसके घुटने पर बैठ गया था।
आपका बटमार मोहक है।मेरी वसीलीव्ना ने पति से फ्रेंच में कहा। बुल्का ने उसकी कटार की प्रशंसा करनी प्रारंभ की तो उसने वह उसे दे दी ।
बुल्का ने कटार सौतेले पिता को दिखाई।
यह बहुत कीमती है।मेरी वसीलीव्ना ने कहा।
उसे कुछ उपहार देने के लिए हमें कोई उपाय खोजना आवश्यक है।वोरोन्त्सोव ने कहा।
हाज़ी मुराद आँखें नीची किए बैठा रहा और बुल्का के घुंघराले बालों पर लगातार हाथ फेरता रहा।
बहादुर बालक, बहादुर बालक।
कितनी प्यारी कटार है!’’ वोरोन्त्सोव ने अच्छे आधारवाले स्टील के बीच में खांचेदार धारवाली कटार को बाहर निकालते हुए कहा। बहुत धन्यवाद ।
उससे पूछो, हम उसके लिए क्या कर सकते हैं,” वोरोन्त्सोव ने दुभाषिये से कहा।
दुभाषिये ने अनुवाद किया और हाजी मुराद ने तुरंत उत्तर दिया कि वह कुछ नहीं चाहता, लेकिन वह एक ऐसे स्थान में जाना चाहेगा जहाँ वह नमाज अदा कर सके। वोरोन्त्सोव ने एक नौकर को बुलाया और कहा कि वह हाजी मुराद की इच्छा को पूरा करे।
जैसे ही हाजी मुराद अकेला हुआ, उसका चेहरा बदल गया। उसके चेहरे पर प्रसन्नता, चाहत और गर्व के मिश्रित भाव तिरोहित हो गये और एक प्रकार की चिन्ता ने उनका स्थान ले लिया।
वोरोन्त्सोव द्वारा उसका स्वागत उसकी अपेक्षा से कहीं अधिक अच्छा था। लेकिन जितना अच्छा स्वागत था उतना ही कम हाजी मुराद को वोरोन्त्सोव और उसके अधिकारियों पर भरोसा था। वह हर चीज से भयभीत था। वह सोचता रहा कि शायद उसे कैद कर लिया गया था। बेडि़यों में जकड़कर उसे साइबेरिया भेज दिया जायेगा या तत्काल मार दिया जायेगा, और इसीलिए वह अपनी सुरक्षा के प्रति चैकन्ना था।
एल्दार अंदर आया और उसने उससे पूछा कि उसके अंगरक्षकों को कहाँ ठहराया गया था और घोड़े कहाँ थे और क्या उन लोगों ने उनसे अपने हथियार ले लिये थे ?
एल्दार ने बाताया कि घोड़े प्रिन्स के अस्तबल में थे। आदमियों को आउट हाउसमें ठहराया गया था। उन लोगों ने अपने हथियार सौंप दिये थे और दुभाषिया उन्हें भोजन और चाय दे रहा था।
हाजी मुराद ने सिर हिलाकर हैरानी व्यक्त की, कपड़े उतारे और घुटनों के बल झुककर नमाज अदा करने लगा। जब उसने नमाज समाप्त कर ली उसने अपनी चांदी की कटार अपने पास लाने का आदेश दिया। उसने पुनः कपड़े पहने और कोच पर पैर रखकर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा कि देखें अब क्या होगा।
ठीक चार बजे के बाद उसे प्रिन्स के पास भोजन के लिए बुलाया गया।
भोजन में उसने पुलाव के अतिरिक्त कुछ नहीं लिया, जिसे उसने उसी स्थान से स्वयं परोसा जहाँ से मेरी वसीलीव्ना ने परोसा था।
उसे भय है कि हम उसे जहर दे सकते हैं,” मेरी वसीलीव्ना ने पति से कहा। उसने स्वयं उसी स्थान से परोसा जहाँ से मैनें।उसने दुभाषिये के माध्यम से तुरंत हाजी मुराद को संबोधित करते हुए पूछा कि वह अपनी प्रार्थना पुनः कब करेगा ? हाजी मुराद ने पाँचों उंगलियाँ उठायीं और सूर्य की ओर इशारा किया।
तब, शीघ्र ही,” वोरोन्त्सोव ने टनटनाने वाली घड़ी निकाली, एक स्प्रिंग दबाई, और घड़ी ने टनटनाकर सवा चार बजे का समय बताया। हाजी मुराद स्पष्ट रूप से उस आवाज से अचम्भित हुआ था, और उसने उसे पुनः टनटनाने के लिए कहा और घड़ी देखने का आग्रह किया।
इस बार आप करके देखें। घड़ी उसे दे दीजिये,” मेरी वसीलीव्ना ने पति से कहा।
वोरोन्त्सोव ने घड़ी तुरंत हाजी मुराद की ओर बढ़ा दी। हाजी मुराद ने अपनी छाती पर अपना हाथ रखा और घड़ी ले ली। उसने अनेक बार स्प्रिंग दबायी, सुना और प्रशंसा में सिर हिलाता रहा।
भोजनोपरांत मिलर जकोमेल्स्की के परिसहायक (ए डी सी ) के प्रिंस से मिलन की सूचना दी गयी।
परिसहायक ने प्रिन्स को बताया कि जब जनरल ने हाजी मुराद के आत्म समर्पण के विषय में सुना, वह इस बात से बहुत खीझे कि उन्हें इस विषय में सूचित नहीं किया गया, और मांग की कि हाजी मुराद को तुरन्त उसके पास लाया जाये। वोरोन्त्सोव ने कहा कि वह आज्ञा का पालन करेगा। अपने दुभाषिये के माध्यम से उसने जनरल का आदेश हाजी मुराद को बताया और अपने साथ मिलर के पास चलने के लिए उसे कहा।
जब मेरी वसीलीव्ना को ज्ञात हुआ कि परि-सहायक क्यों आया था, उसने तुरन्त स्पष्ट अनुभव किया कि उसके पति और जनरल के मध्य अवश्य एक तमाशा होगा। पति के रोकने के हर संभव प्रयास के बावजूद उसने उसके और हाजी मुराद के साथ जनरल से मिलने के लिए प्रस्थान करने का निर्णय किया।
बेहतर होगा कि तुम यहीं रुको। यह मेरा मामला है तुम्हारा नहीं।
तुम मुझे जनरल की पत्नी से मिलने जाने से नहीं रोक सकते।
तुम जाने का कोई दूसरा समय चुन सकती हो।
लेकिन, मैं अभी जाना चाहती हूँ।
उसके लिए ऐसा कुछ नहीं है।वोरोन्त्सोव सहमत हो गया, और तीनों चल पड़े।
जब वे पंहुचे, मिलर फीकी विनम्रता के साथ मेरी वसीलीव्ना को पत्नी के पास ले गया, और सहायक को कहा कि वह हाजी मुराद को स्वागत कक्ष में ले जाये और जब तक उसे उसका आदेश न मिले, उसे कहीं बाहर जाने की अनुमति न दे।
अंदर आइयेअपनी स्टडी का दरवाजा खोलते हुए उसने वोरोन्त्सोव से कहा और अपने आगे प्रिन्स को अंदर प्रवेश करने का मार्ग प्रशस्त किया।
अन्दर एक बार वह प्रिन्स के सामने रुक गया और उसे बैठने के लिए कहे बिना बोला।
मैं यहाँ का मिलिटरी कमाण्डरहूँ, इसलिए शत्रु से कोई भी वार्ता मेरे माध्यम से ही होनी चाहिए थी। हाजी मुराद के आत्म-समर्पण की सूचना आपने मुझे क्यों नहीं दी?”
एक एजेण्ट मेरे पास आया था और मेरे समक्ष हाजी मुराद के आत्म-समर्पण करने की उसकी इच्छा व्यक्त की थी,” वोरोन्त्सोव ने उत्तर दिया। उत्तेजना से उसका चेहरा विवर्ण हो उठा था क्योंकि उसे क्रुद्ध जनरल से कठोर प्रतिक्रिया की ही अपेक्षा थी। उस समय वह स्वयं क्रोध से प्रभावित था।
मैं आपसे पूछ रहा हूँ, कि आपने मुझे सूचना क्यों नहीं दी थी ?”
बैरन, मैं ऐसा करना चाहता था, लेकिन
‘‘बैरन नहीं, बल्कि आपके लिए महामहिम…”
यहाँ बैरन का दबा क्षोभ अचानक फूट पड़ा था। उसने वर्षों से अपने अंदर उबल रही भावनाओं को निकल जाने दिया।
मैंनें सत्ताइस वर्षों तक सम्राट की सेवा केवल इसलिए नहीं की कि कल को नियुक्त हुआ कोई व्यक्ति अपने पारिवारिक सम्पर्कों का दुरुपयोग कर मेरी नाक के नीचे ऐसे मामले तय करे जिनसे उसका कोई संबन्ध नहीं।
महामहिम, मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि अनुचित बात न बोलें।वोरोन्त्सोव ने उसे बाधित किया।
मैं सत्य कह रहा हूँ और अनुमति न दूंगा …” जनरल ने और अधिक क्रोधित होते हुए कहना शुरू किया।
इसी समय स्कर्ट की सरसराहट हुई और मेरी वसीलीव्ना ने प्रवेश किया। उसके पीछे अकल्पनीयरूप से नाटे कद की एक महिला थी, जो मिलर जकोमेल्स्की की पत्नी थी।
बैरन इतना पर्याप्त है। साइमन परेशान नहीं होना चाहता था।मेरी वसीलीव्ना भड़क उठी।
प्रिन्सेज, नुक्ता यह नहीं है…”
अच्छा, इसे भूल जाएं। एक खराब बहस, एक अच्छे झगड़े से बेहतर होती है, आप जानते हैंमैं क्या कह रही हूँ ?” ठहाका लगाकर वह हँस पड़ी।
क्रुद्ध जनरल उस खूबसूरत युवती की मोहक मुस्कान से कुछ ढीला पड़ा। उसकी मूंछों के नीचे हल्की मुस्कान तैर गयी।
मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं गलती पर था,” वारोन्त्सोव ने कहा, ”लेकिन
ठीक है, मुझे हल्का-सा गुस्सा आ गया था।मिलर ने कहा और प्रिन्स की ओर हाथ बढ़ाया।
शांति स्थापित हुई, और तय यह हुआ कि हाजी मुराद को कुछ समय के लिए मिलर के पास छोड़ दिया जाये, और उसके बाद उसे लेफ्ट फ्लैंकके कमाण्डर के पास भेज दिया जाये।
हाजी मुराद बगल के कमरे में बैठा था, और यद्यपि वह यह नहीं समझ पाया कि उन्होंने क्या कहा था, उसने महत्वपूर्ण बात समझ ली थी कि वे उसके विषय में ही झगड़ रहे थे। उसके द्वारा शमील को छोड़ देना रूसियों के लिए अत्यधिक महत्व का विषय था और इसलिए, यदि वे उसे निर्वासित नहीं करते अथवा मारते नहीं तो वह उनसे बहुत कुछ निवेदन कर सकता है। इसके अतिरिक्त, उसने अनुभव किया कि, यद्यपि मिलर जकोमेल्स्की प्रधान था, वह उसके अधीनस्थ वोरोन्त्सोव जितना महत्वपूर्ण नहीं था। वोरोन्त्सोव काउण्ट था जबकि मिलर जकोमेल्स्की काउण्ट नहीं था। इसलिए जब मिलर जकोमेल्स्की ने हाजी मुराद को बुलाया और उससे पूछताछ प्रारंभ की, हाजी मुराद ने उद्धत और तटस्थ रहते हुए कहा कि उसने गोरे जार की सेवा करने के लिए पहाड़ों को छोड़ा था और वह अपने सरदार, कहना चाहिए कि, कमाण्डर-इन-चीफ, प्रिन्स वोरोन्त्सोव के समक्ष तिफ्लिस में ही सब कुछ बयान करेगा।
॥ सात ॥
घायल आवदेयेव को छावनी के निकासी द्वार के निकट के अस्पताल में, जो लकड़ी के एक छोटे-से मकान में था, ले जाया गया और जनरल वार्ड के एक खाली बेड पर लिटा दिया गया। वार्ड में चार मरीज थे। एक सन्निपात-ग्रस्त टायफायड का केस था, और दूसरा निस्तेज, ज्वरग्रस्त, धंसी हुई आँखें, सदैव मरोड़ उठने की आशंका से ग्रस्त और लगातार जम्हुआई लेनेवाला मरीज था । दो और थे जो तीन सप्ताह पहले हुए हमले में घायल हुए थे। एक, जो खड़ा हुआ था, हाथ में और दूसरा; जो बिस्तर पर बैठा हुआ था, कंधे में घायल था। टायफायड वाले मरीज को छोडकर शेष ने नवागन्तुक को घेर लिया और उसे लेकर आने वालों से प्रश्न करने लगे।
वे लोग कभी-कभी धुंआधार गोलीबारी करते हैं, लेकिन इस बार उन्होंनें केवल आधा दर्जन बार ही फायर की थी,”- लेकर आने वालों में से एक ने उन्हें बताया ।
भाग्य की बात है।
ओह।आवदेयेव दर्द को रोकने का प्रयास करता हुआ कराहा, जब वे उसे बिस्तर पर लेटा रहे थे। जब उन्होनें उसे लेटा दिया, उसने त्योरियाँ चढ़ाई और कराहना बंद कर दिया, लेकिन पैर के कारण बेचैनी अनुभव करता रहा। उसने घाव को अपने हाथों से पकड़ लिया और एकटक अपने सामने की ओर देखने लगा। डाक्टर आया और उन्हें आदेश दिया कि उसे औंधा पलट दें यह देखने के लिए कि क्या गोली पीछे से बाहर निकल गयी थी।
यह क्या है ?” डाक्टर ने पीठ और नितम्बों पर बने क्रास के लंबे सफेद निशान की ओर संकेत करते हुए पूछा।
सर, पुराने घाव का निशान है !कराहते हुए आवदेयेव बुदबुदाया।
उसने धन का अपव्यव किया था। उसके लिए उसे जो दण्ड दिया गया था, यह उसीका निशान था।
उन्होंने उसे पुन: पलट दिया, और डाक्टर ने सलाई से उसके पेट में गहराई तक टटोला और गोली तक पहुँच गया, लेकिन उसे निकाल नहीं सका। उसने घाव की ड्रेसिंग की और चिपकनेवाला प्लास्टर चढ़ाया, फिर चला गया। पूरे परीक्षण और घाव की ड्रेसिंग के समय आवदेयेव दांत भींचे और आँखें बंद किये लेटा रहा था। जब डाक्टर चला गया उसने आँखें खोलीं और विस्मय से चारों ओर देखा। उसकी आँखें मरीजों और अर्दली की ओर घूमीं, फिर भी उसे लगा कि वह उन्हें नहीं देख रहा है, बल्कि विस्मित कर देने वाला कुछ और ही देख रहा है।
आवदेयेव के साथी पानोव और सेरेगिन आए हुए थे। वह अचम्भित-सा उन्हें टकटकी लगाकर देखता हुआ, उसी प्रकार लेटा रहा। देर तक वह अपने मित्रों को पहचान नहीं पाया, हालांकि उसकी आँखें सीधे उन्हें ही देख रही थीं।
पीट, क्या तुम घर से कुछ मंगाना चाहते हो ?” पानोव ने पूछा।
आवदेयेव ने कोई उत्तर नहीं दिया, हालांकि वह पानोव के चेहरे की ओर ही देख रहा था।
मै पूंछ रहा हूँ, तुम घर से कुछ मंगाना चाहते हो ?” उसके ठण्डे हाथ को स्पर्श करते हुए पानोव पुन: बोला।
आवदेयेव को चेतना वापस लौटती हुई-सी प्रतीत हुई।
हैलो, अन्तोनिच।
हाँ, मैं आ गया। तुम घर से कुछ मंगाना चाहते हो ? सेरेगिन लिख देगा।
सेरेगिन,” कठिनाई से अपनी आँखें सेरेगिन की ओर घुमाते हुए आवदेयेव बोला, ”क्या तुम लिख दोगे ? तब उन्हें यह लिखो आपका बेटा पीटर मर गया । मुझे अपने भाई से ईर्ष्या थी यही बात पिछली रात मैं कह रहा था लेकिन अब मैं प्रसन्न हूँ। ईश्वर उसे सौभाग्यशाली करे। मैं उसकी खुशकिस्मती की कामना करता हूँ। मैं प्रसन्न हूँ। ऐसा ही कुछ लिख दो।
जब वह यह सब कह चुका, उसने पानोव पर एकटक दृष्टि गड़ायी और लंबी चुप्पी साध ली।
पानोव ने कोई उत्तर नहीं दिया।
तुम्हारा पाईप, तुम्हारा पाईप, मैं कहता हँ, वह तुम्हें मिल गया ?” आवदेयेव ने पूछा।
वह मेरे सामान में था।
अच्छा, अच्छा। अब मुझे एक मोमबत्ती दो। मैं मरने वाला हूँ।आवदेयेव बोला।
उसी समय पोल्तोरत्स्की उसे देखने आया।
तुम कैसा अनुभव कर रहे हो खराब ?” वह बोला।
आवदेयेव ने आँखें बंद कर लीं और सिर हिलाया। उसका दुबला चेहरा निष्प्रभ और कठोर था। उसने उत्तर नहीं दिया, लेकिन पानोव से पुन: बोला:
मुझे मोमबत्ती दो, मैं मरने वाला हूँ।
उन्होने एक मोमबत्ती उसके हाथ में रख दी, लेकिन यह सोचकर कि उसकी उंगलियाँ उसे पकड़ नहीं पायेगीं, उन्होंने मोमबत्ती उसकी उंगलियों के बीच में रखा और उसे थामे रहे। पोल्तोरत्स्की कमरे से बाहर चला गया और उसके जाने के पाँच मिनट बाद अर्दली ने आवदेयेव के हृदय के पास कान लगाया और कहा कि वह मर गया।
तिफ्लिस को जो रिपोर्ट भेजी गई उसमें आवदेयेव की मृत्यु का विवरण इस प्रकार दिया गया था- ”23 नवम्बर को कुरियन बटालियन की दो कम्पनियाँ जंगल साफ करने के लिए छावनी से गयी थीं। वृक्ष काटने वालों पर आक्रमण कर दिया। अग्रिम चौकी पर तैनात दलों ने वापस लौटना प्रारंभ कर दिया, जब कि दूसरी कम्पनी ने संगीनों से धावा बोल दिया और कबीलाइयों को खदेड़ दिया। युद्ध के दौरान हमारे दो सिपाही सामान्य रूप से घायल हुए थे और एक की मृत्यु हो गयी थी। कबीलाइयों के लगभग सौ लोग हताहत हुए थे।

अनुवाद – रूपसिंह चन्देल