tag:blogger.com,1999:blog-3235637410619635424.post6277298092267604321..comments2021-09-23T22:14:57.489-07:00Comments on pushkin ke desh men: अनिल जनविजयhttp://www.blogger.com/profile/02273530034339823747noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3235637410619635424.post-20001238797609294432015-10-04T23:09:06.167-07:002015-10-04T23:09:06.167-07:00clasic की नकल भी कितनी ज्यादा होती है और मामूली हे...clasic की नकल भी कितनी ज्यादा होती है और मामूली हेरफेर के साथ। इक ऐसा ही राज आपकी अनूदित कहानी पढ़कर स्पष्ट हुआ। वर्षों पहले , ठीक तरह याद नहीं आ रहा किन्तु यही कहानी फर्क सिर्फ इतना कि यहां पिता है वहां माम थी और पूरी कहानी हूबहू। अनुवाद कितने जरूरी है ताकि ऐसी चालाकियों को खोल जा सके । थंक्स असपकि अनूदित कहानी मेरे प्रिय लेखक की पढ़करमुझे उस अज्ञात लेखक को कारगुजारी याद आई।samay ke sakhihttps://www.blogger.com/profile/03814440607543261572noreply@blogger.com