लेव तलस्तोय की उपन्यासिका --
हाजी मुरात
भाग चार
भाग चार
घायल आवदेयेव को छावनी के
निकासी द्वार के निकट के अस्पताल में, जो लकड़ी के एक छोटे-से मकान में था, ले जाया गया और जनरल वार्ड के
एक खाली बेड पर लिटा दिया गया। वार्ड में चार मरीज थे। एक सन्निपात-ग्रस्त टायफायड
का केस था, और दूसरा निस्तेज, ज्वरग्रस्त, धंसी हुई आँखें, सदैव मरोड़ उठने की आशंका से
ग्रस्त और लगातार जम्हुआई लेनेवाला मरीज था । दो और थे जो तीन सप्ताह पहले हुए
हमले में घायल हुए थे। एक, जो खड़ा हुआ था, हाथ में और दूसरा; जो बिस्तर पर बैठा हुआ था, कंधे में घायल था। टायफायड
वाले मरीज को छोडकर शेष ने नवागन्तुक को घेर लिया और उसे लेकर आने वालों से प्रश्न
करने लगे।
” वे लोग कभी-कभी धुंआधार
गोलीबारी करते हैं, लेकिन
इस बार उन्होंनें केवल आधा दर्जन बार ही फायर की थी,”- लेकर आने वालों में से एक ने
उन्हें बताया ।
”भाग्य की बात है।”
”ओह।” आवदेयेव दर्द को रोकने का
प्रयास करता हुआ कराहा, जब वे उसे बिस्तर पर लेटा रहे थे। जब उन्होनें उसे लेटा दिया, उसने त्योरियाँ चढ़ाई और
कराहना बंद कर दिया, लेकिन
पैर के कारण बेचैनी अनुभव करता रहा। उसने घाव को अपने हाथों से पकड़ लिया और एकटक
अपने सामने की ओर देखने लगा। डाक्टर आया और उन्हें आदेश दिया कि उसे औंधा पलट दें
यह देखने के लिए कि क्या गोली पीछे से बाहर निकल गयी थी।
”यह क्या है ?” डाक्टर ने पीठ और नितम्बों पर
बने क्रास के लंबे सफेद निशान की ओर संकेत करते हुए पूछा।
”सर, पुराने घाव का निशान है !” कराहते हुए आवदेयेव बुदबुदाया।
उसने धन का अपव्यव किया था।
उसके लिए उसे जो दण्ड दिया गया था, यह उसीका निशान था।
उन्होंने उसे पुन: पलट दिया, और डाक्टर ने सलाई से उसके
पेट में गहराई तक टटोला और गोली तक पहुँच गया, लेकिन उसे निकाल नहीं सका।
उसने घाव की ड्रेसिंग की और चिपकनेवाला प्लास्टर चढ़ाया, फिर चला गया। पूरे परीक्षण और
घाव की ड्रेसिंग के समय आवदेयेव दांत भींचे और आँखें बंद किये लेटा रहा था। जब
डाक्टर चला गया उसने आँखें खोलीं और विस्मय से चारों ओर देखा। उसकी आँखें मरीजों
और अर्दली की ओर घूमीं, फिर भी उसे लगा कि वह उन्हें नहीं देख रहा है, बल्कि विस्मित कर देने वाला
कुछ और ही देख रहा है।
आवदेयेव के साथी पानोव और
सेरेगिन आए हुए थे। वह अचम्भित-सा उन्हें टकटकी लगाकर देखता हुआ, उसी प्रकार लेटा रहा। देर तक
वह अपने मित्रों को पहचान नहीं पाया, हालांकि उसकी आँखें सीधे उन्हें ही देख रही थीं।
”पीट, क्या तुम घर से कुछ मंगाना
चाहते हो ?” पानोव ने पूछा।
आवदेयेव ने कोई उत्तर नहीं
दिया, हालांकि वह पानोव के चेहरे की
ओर ही देख रहा था।
” मै पूंछ रहा हूँ, तुम घर से कुछ मंगाना चाहते
हो ?” उसके ठण्डे हाथ को स्पर्श
करते हुए पानोव पुन: बोला।
आवदेयेव को चेतना वापस लौटती
हुई-सी प्रतीत हुई।
”हैलो, अन्तोनिच।”
”हाँ, मैं आ गया। तुम घर से कुछ
मंगाना चाहते हो ? सेरेगिन
लिख देगा।”
”सेरेगिन,” कठिनाई से अपनी आँखें सेरेगिन
की ओर घुमाते हुए आवदेयेव बोला, ”क्या तुम लिख दोगे ? तब उन्हें यह लिखो – आपका बेटा पीटर मर गया । मुझे
अपने भाई से ईर्ष्या थी – यही बात पिछली रात मैं कह रहा था … लेकिन अब मैं प्रसन्न हूँ।
ईश्वर उसे सौभाग्यशाली करे। मैं उसकी खुशकिस्मती की कामना करता हूँ। मैं प्रसन्न
हूँ। ऐसा ही कुछ लिख दो।”
जब वह यह सब कह चुका, उसने पानोव पर एकटक दृष्टि
गड़ायी और लंबी चुप्पी साध ली।
पानोव ने कोई उत्तर नहीं
दिया।
”तुम्हारा पाईप, तुम्हारा पाईप, मैं कहता हँ, वह तुम्हें मिल गया ?” आवदेयेव ने पूछा।
”वह मेरे सामान में था।”
”अच्छा, अच्छा। अब मुझे एक मोमबत्ती
दो। मैं मरने वाला हूँ।” आवदेयेव बोला।
उसी समय पोल्तोरत्स्की उसे
देखने आया।
”तुम कैसा अनुभव कर रहे हो … खराब ?” वह बोला।
आवदेयेव ने आँखें बंद कर लीं
और सिर हिलाया। उसका दुबला चेहरा निष्प्रभ और कठोर था। उसने उत्तर नहीं दिया, लेकिन पानोव से पुन: बोला:
”मुझे मोमबत्ती दो, मैं मरने वाला हूँ।”
उन्होने एक मोमबत्ती उसके हाथ
में रख दी, लेकिन यह सोचकर कि उसकी
उंगलियाँ उसे पकड़ नहीं पायेगीं, उन्होंने मोमबत्ती उसकी उंगलियों के बीच में रखा और उसे थामे
रहे। पोल्तोरत्स्की कमरे से बाहर चला गया और उसके जाने के पाँच मिनट बाद अर्दली ने
आवदेयेव के हृदय के पास कान लगाया और कहा कि वह मर गया।
तिफ्लिस को जो रिपोर्ट भेजी
गई उसमें आवदेयेव की मृत्यु का विवरण इस प्रकार दिया गया था- ”23 नवम्बर को कुरियन बटालियन की
दो कम्पनियाँ जंगल साफ करने के लिए छावनी से गयी थीं। वृक्ष काटने वालों पर आक्रमण
कर दिया। अग्रिम चौकी पर तैनात दलों ने वापस लौटना प्रारंभ कर दिया, जब कि दूसरी कम्पनी ने
संगीनों से धावा बोल दिया और कबीलाइयों को खदेड़ दिया। युद्ध के दौरान हमारे दो
सिपाही सामान्य रूप से घायल हुए थे और एक की मृत्यु हो गयी थी। कबीलाइयों के लगभग
सौ लोग हताहत हुए थे।”
-8-
जिस दिन पीटर आवदेयेव की
वोज्दविजेन्स्क अस्पताल में मृत्यु हुई, उसी दिन उसका वृद्ध पिता, भाभी और उसकी जवान बेटी बर्फ़
जमे खलिहान में जई गाह रहे थे। शाम को बहुत अधिक बर्फ़ गिरी थी, और कुछ ही देर में जमकर वह
सख्त हो गयी थी। वृद्ध व्यक्ति मुर्गे की तीसरी बांग पर ही जाग गया था, और, तुषाराच्छन्न खिड़की से चाँद
की चटख रोशनी देख, उसने
अंगीठी बुझाई, जूते, फरकोट और हैट पहने और खलिहान
की ओर चल पड़ा था। उसने वहाँ दो घण्टे तक काम किया, फिर झोपड़ी में लौटा और बेटा
और महिलाओं को जगाया था। जब औरतें और लड़की बाहर आयीं; फर्श साफ थी, लकड़ी का एक बेलचा मुलायम सफेद
बर्फ़ में सीधा खड़ा हुआ था, जिसके बगल में एक झाड़ू रखी हुई थी, जिसकी मूठ ऊपर की ओर थी और
साफ फर्श पर जई के पूले एक के बाद एक दो कतारों में रखे हुए थे। उन्होंने मूसल
उठाए और तीन समान्तर प्रहारों के लय से गाहना प्रारंभ कर दिया था। बूढ़ा भारी मूसल
का प्रयोग कर पुआल को कुचल रहा था। उसकी पोती पूले के ऊपरी हिस्से को संतुलित ढंग
से कूट रही थी और उसकी पुत्रवधू उन्हें उलट रही थी।
चाँद अस्त हो चुका था और
प्रकाश फैलने लगा था। उनका काम समाप्त होने वाला ही था जब बड़ा बेटा आकिम हाथ बटाने
के लिए आया।
”इधर उधर समय व्यर्थ क्यों कर
रहा है?” उसका पिता काम रोक कर और मूसल
के सहारे खड़ा होकर उस पर चिल्लाया।
, ”मुझे घोड़ों को खरहरा करना था।”
”घोड़ों को खरहरा करना था,” बूढ़े ने तिरस्कृत भाव से
दोहराया। ”तुम्हारी माँ उन्हें खरहारा
कर देगी। एक मूसल ले ले। तुम नशेबाज वीभत्स रूप से मोटा गये हो।”
”मैं आपसे अधिक नहीं पीता,” बेटा बुदबुदाया।
बूढ़ा क्रोधित हो उठा और कूटना
चूक गया। ”वह क्या है?” उसने धमकी भरे स्वर में पूछा।
बेटे ने चुपचाप मूसल उठा लिया
और काम नयी लय के साथ प्रारंभ हो गया, ”ट्रैप…टा…पा…ट्रैप…ट्रैप…।” बूढ़ा सबके अंत में अपने भारी मूसल से चोट करता था।
”उसकी ओर देखो, उसकी गर्दन एक भेंड़ की भाँति
मोटी हो गयी है। मुझे देखो, मेरी पतलूनें नहीं ठहर पातीं।” बूढ़ा बुदबुदाया, कूटना चूक गया और उसका मूसल
हवा में लहराया जिससे कूटने की लय बनी रही।
उन्होंने पूले की पंक्ति समाप्त
कर दी और महिलाओं ने पांचे से मुआल समेटना शुरू कर दिया।
”पीटर मूर्ख था जिसने तेरा
स्थान ग्रहण किया। उन्होंने फौज में तेरे स्थान पर उस मूर्ख को पीटा होगा, और घर के काम में वह तुझसे
पाँच गुना योग्य था।”
”इतना पर्याप्त है, दादा,” उसकी पुत्रवधू टूटे गुच्छों
को उठाती हुई बोली।
”खाने वाले तुम्हारे छ: मुँह
हैं और तुममें से कोई एक दिन भी काम नहीं करता। जबकि पीटर दो लोगों के बराबर अकेला
काम करता था, किसी लोकोक्ति की भाँति नहीं …।”
बूढ़े की पत्नी बाड़े की ओर के
रास्ते से आयी। उसने फीते से सख्त बंधी हुई ऊनी पतलून पहन रखी थी और उसके नये
जूतों के नीचे बर्फ़ चरमरा रही थी। आदमी लोग पांचे से बिना ओसाए आनाज को एक ढेर में
समेट रहे थे और औरतें उसे उठा रही थीं।
”कारिन्दे ने बुलाया है। वह
चाहता है कि सभी जमींदार के लिए ईंटें ढोयें।” वृद्धा ने कहा, ”मैंनें तुम्हारा लंच बांध
दिया है। क्या तुम अब जाओगे?”
”बहुत अच्छा । चितकबरे घोड़े को
जोतो और जाओ,” बूढ़े ने आकिम से कहा। ”और ठीक ढंग से व्यवहार करना, अन्यथा पिछली बार की भाँति
तुम मुझ पर दोष मढ़ दोगे। पीटर के विषय में सोचो, वह तुम्हारे लिए एक उदाहरण
है।”
”जब वह घर पर था वह उसे कोसता
था,” आकिम भुनभुनाया, ”और अब वह चला गया है तो वह
मेरी ओर मुड़ गया है।”
”क्योंकि तुम इसी योग्य हो,” उसकी माँ ने उसी प्रकार
क्रोधित होते हुए कहा। ” पीटर से तुम्हारी कोई तुलना नहीं है।”
”बहुत अच्छा, बहुत अच्छा,” आकिम बोला।
”नि:संदेह, बहुत अच्छा। तुमने फसल का
पैसा शराब पीने में उड़ा दिया, और अब तुम ‘बहुत अच्छा’ कहते हो।”
”पुरानी खरोचों को याद करना
क्या अच्छा है? ” बहू बोली।
पिता और पुत्र के बीच झगड़ा
होना पुरानी बात थी। पीटर को सेना में बुलाए जाने के तुरन्त बाद से ही ऐसा हो रहा
था। बूढ़े ने तभी अनुभव किया था कि उसने खराब समझौता किया था। यह सही था कि
नियमानुसार, जैसा कि बूढ़े ने उसे समझा था, बिना बच्चों वाले आदमी को
परिवार वाले के लिए सेना में भर्ती हो जाना उसका कर्तव्य है। आकिम के चार बच्चे
हैं, जबकि पीटर के एक भी नहीं, लेकिन पीटर पिता की भाँति एक
कुशल कारीगर था : दक्ष, बुद्धिमान, मजबूत और कठोर परिश्रमी। वह पूरे समय काम करता था। काम कर
रहे लोगों के पास से गुजरने पर, उनकी सहायता के लिए वह तुरंत हाथ बढ़ायेगा, जैसा कि बूढ़ा किया करता था।
वह राई की कई जोड़ी कतारों को काटकर बोझ बांध देगा, एक पेड़ गिरा देगा या ईंधन की
लकड़ियाँ काटकर गट्ठर बना देगा। उसे खोने का बूढ़े को गम था, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता
था। सेना की अनिवार्य भर्ती मृत्यु की भाँति थी। एक सैनिक शरीर के एक कटे अंग की
भाँति था, और उसे याद करना या उसकी
चिन्ता करना व्यर्थ था। केवल कभी-कभी, बड़े भाई पर अकुंश के लिए बूढ़ा उसका जिक्र कर दिया करता था, जैसाकि उसने अभी किया था।
उसकी माँ प्राय: अपने छोटे बेटे के विषय में सोचती थी और एक वर्ष से अधिक समय से
अपने पति से पीटर को पैसे भेजने के लिए प्रार्थना करती आ रही थी। लेकिन बूढ़ा
अनसुना करता रहा था।
आवदेयेव का घर समृद्ध था, और बूढ़े ने काफी धन संग्रह कर
रखा था, लेकिन अपनी बचत को वह किसी
काम के लिए भी नहीं छूता था। इस समय,जब वृद्धा ने छोटे बेटे के विषय में बात करते हुए उसे सुना, उसने निश्चय किया कि जब वे जई
बेच लेगें, वह उससे पुन:, यदि अधिक नहीं, तो एक रूबल ही भेजने के लिए
कहेगी। युवतियों के जमींदार के यहाँ काम करने के लिए चली जाने के बाद जब वह बूढ़े
के साथ अकेली रह गयी उसने जई की बेच में से पीटर को एक रूबल भेजने के लिए पति को
राजी कर लिया। इस प्रकार ओसाई हुई जई के ढेर से जब बारह चौथाई जई तीन स्लेजों में
चादरों में भर दी गयी और चादरों को सावधानीपूर्वक लकड़ी की खूंटियों से कसकर बांध
दिया गया, उसने बूढ़े को एक पत्र दिया
जिसे उसके लिए चर्च के चौकीदार ने लिखा था और बूढ़े ने वायदा किया कि कस्बे में
पहुंचकर वह उसे एक रूबल के साथ डाक में डाल देगा।
नया फरकोट, कुरता और साफ-सफेद ऊनी पतलून
पहनकर, बूढ़े ने पत्र लिया, और उसे अपने पर्स में रख
लिया। आगेवाली स्लेज पर बैठकर उसने प्रार्थना की और कस्बे के लिए चल पड़ा। उसका
पोता पीछे की स्लेज पर बैठा था। कस्बे में बूढ़े ने एक दरबान से अपने लिए पत्र पढ़
देने का अनुरोध किया, और
बहुत प्रसन्नतापूर्वक निकट होकर पत्र सुनता रहा।
पीटर की माँ ने पत्र का
प्रारंभ आशीर्वाद देते हुए किया था। फिर सभी की ओर से शुभ कामनाएं लिखवायी थीं।
उसके पश्चात् यह समाचार था कि, ”अक्जीनिया (पीटर की पत्नी) ने उनके साथ रहने से इन्कार कर
दिया था और नौकरी में चली गयी थी। हमने सुना है कि वह अच्छा कर रही है और एक
ईमानदार जीवन जी रही है।” रूबल रखने की बात का भी उल्लेख था और दुखी हृदया बूढ़ी औरत ने
आँखों में आंसू भरकर चर्च के चौकीदार को पुनष्च उसकी ओर से शब्द-दर शब्द आगे लिखने
का अनुरोध किया था।
”ओ, मेरे प्यारे बच्चे, मेरे प्रिय पेन्नयूषा तुम्हारे लिए दुखी मेरी आँखों से किस प्रकार
आंसू बहते रहते हैं। मेरी आँखों के चमकते सूरज, किसने तुम्हे मुझसे विलग किया?” यहाँ बूढ़ी औरत ने आह भरी थी, रोयी थी और कहा था, ”मेरे प्यारे, इतना ही पर्याप्त होगा।”
पीटर के भाग्य में यह समाचार
प्राप्त करना नहीं था कि उसकी पत्नी घर छोड़ गयी थी, या
रूबल या उसकी माँ के आखिरी शब्द। इस प्रकार यह सब पत्र में ही बना रहा। पत्र और
पैसे इस समाचार के साथ लौटा दिये गये कि, ”जार, पितृभूमि, और धार्मिक निष्ठा की रक्षा
करता हुआ पीटर युद्ध में मारा गया।” इस प्रकार फौजी क्लर्क ने लिख
भेजा था।
जब वृद्धा को यह समाचार
प्राप्त हुआ वह क्षणभर के लिए रोयी थी, और फिर काम पर चली गयी थी।
अगले रविवार वह चर्च गयी थी, अंतिम संस्कार किया था, पीटर का नाम मृतकों की स्मरणिका में दर्ज किया था और ईश्वर के सेवक
पीटर की स्मृति में पूजा की रोटी के टुकड़े साधुजनों में बांटे थे।
अपने प्रिय पति की मृत्यु पर
अक्जीनिया भी रोयी थी, जिसके साथ उसने केवल एक वर्ष
का संक्षिप्त जीवन व्यतीत किया था। उसने अपने पति और अपनी उजड़ चुकी जिन्दगी, दोनों के लिए ही मातम मनाया था। उसके शोक ने उसे पीटर के सुनहरे
घुंघराले बाल, अपने प्रति उसके प्यार और
पितृहीन इवान के साथ अपने पिछले कठिन जीवन की याद दिला दी थी और इसके लिए उसने
पीटर को ही दोषी ठहराया था जो अजनबियों के बीच गृहविहीन उस दुखी महिला की अपेक्षा
अपने भाई की अधिक चिन्ता करता था।
लेकिन अपने हृदय की गहराई में
वह पीटर की मृत्यु से प्रसन्न थी। वह कारिन्दा द्वारा पुन: गर्भवती थी जिसके साथ
वह रहती थी, और अब कोई उसे दोष नहीं दे
सकता था। अब कारिन्दा उससे विवाह कर सकता था, जैसा कि उसे प्यार करते समय
उसने उससे वायदा किया था।
अनुवाद – रूपसिंह चन्देल
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