शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

चेख़फ़ की कहानी - कमज़ोर

 

चेख़व की कहानी - कमज़ोर

हाल ही में मैंने अपने बच्चों की अध्यापिका यूलिया वसिल्येव्ना को अपने दफ़्तर में बुलाया। मुझे उनसे उनके वेतन का हिसाब-किताब करना था।
मैंने उनसे कहा -- आइए...आइए...बैठिए। ज़रा हिसाब कर लें। आपको पैसों की ज़रूरत होगी। पर आप इतनी संकोची हैं कि ज़रूरत होने पर भी आप ख़ुद पैसे नहीं माँगेंगी। ख़ैर...। हमने तय किया था कि हर महीने आपको तीस रुबल दिए जाएँगे।
--- चालीस...।
--- नहीं...नहीं... तीस। तीस ही तय हुए थे। मेरे पास लिखा हुआ है। वैसे भी मैं हमेशा अध्यापकों को तीस रुबल ही देता हूँ। आपको हमारे यहाँ काम करते हुए दो महीने हो चुके हैं...।
--- दो महीने और पाँच दिन हुए हैं।
--- नहीं, दो महीने से ज़्यादा नहीं। बस, दो ही महीने हुए हैं। यह भी मैंने नोट कर रखा है। तो इस तरह मुझे आपको कुल साठ रूबल देने हैं। लेकिन इन दो महीनों में कुल नौ इतवार पड़े हैं। आप इतवार को तो कोल्या को पढ़ाती नहीं हैं, सिर्फ़ थोड़ी देर उसके साथ घूमती हैं... इसके अलावा तीन छुट्टियाँ त्यौहार की भी पड़ी हैं...।
यूलिया वसील्येव्ना का चेहरा आक्रोश से लाल हो उठा था। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा और अपने घाघरे की सलवटें ठीक करती रहीं।
--- तीन त्यौहार की छुट्टियों को मिलाकर बारह दिन हुए। इसका मतलब आपकी तनख़्वाह में से बारह रूबल कम हो गए। चार दिन कोल्या बीमार रहा और आपने उसे नहीं पढ़ाया। ... तीन दिन तक आपके दाँत में दर्द रहा। तब भी मेरी पत्नी ने आपको यह इजाज़त दे दी थी कि आप उसे दोपहर में न पढ़ाया करें। इसके हुए सात रूबल। तो बारह और सात मिलाकर हुए कुल उन्नीस रूबल। अगर साठ रुबल में से उन्नीस रूबल निकाल दिए जाएँ तो आपके बचे कुल इकतालीस रूबल। क्यों... मेरी बात ठीक है न...?
--- यूलिया वसिल्येव्ना की दोनों आँखों के कोरों पर आँसू चमकने लगे थे। उनका चेहरा काँपने लगा था। घबराहट में उन्हें खाँसी आ गई और वे रुमाल से अपनी नाक साफ़ करने लगीं। पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की।
--- नए साल के समारोह में आपने एक कप-प्लेट भी तोड़ दिया था। दो रूबल उनके भी जोड़िए। प्याला तो बहुत ही महँगा था। बाप-दादा के ज़माने का था। लेकिन, चलिए... छोड़ देता हूँ। आख़िर नुक़सान तो हो ही जाता है। बहुत-कुछ गँवाया है...एक प्याला और सही। आगे... आपकी लापरवाही के कारण कोल्या पेड़ पर चढ़ गया था और उसने अपनी जैकेट फाड़ ली थी। दस रूबल उसके। फिर आपकी लापरवाही के कारण ही नौकरानी वार्या के जूते लेकर भाग गई। आपको सब चीज़ों का ख़याल रखना चाहिए। आख़िर आपको इसी काम के लिए रखा गया है। जूतों के भी पाँच रूबल लगाइए... और दस जनवरी को आपने मुझसे दस रूबल उधार लिए थे...।
--- नहीं, मैंने आपसे कुछ नहीं लिया। यूलिया वसिल्येव्ना ने फुसफुसा कर कहा।
--- लेकिन मैंने यह नोट कर रखा है।
--- चलिए...चलिए... ठीक है। कुल सत्ताईस रूबल हुए।
--- इकतालिस में से सत्ताईस घटाइए। बाक़ी बचे चौदह।
--- उनकी दोनों आँखें आँसुओं से भर गई थीं। उनकी सुन्दर और लम्बी नाक पर पसीने की बूँदें झलकने लगी थीं। बेचारी लड़की !
--- मैंने सिर्फ़ एक ही बार पैसे लिए थे -- उन्होंने काँपती हुई आवाज़ में कहा -- आपकी पत्नी से मैंने तीन रूबल लिए थे। इसके अलावा कभी कुछ नहीं लिया...।
--- अच्छा? अरे, यह तो मेरे पास लिखा हुआ ही नहीं है। तो चौदह में से तीन और घटा दीजिए। बाक़ी बचे ग्यारह। ...लीजिए, ये रहे आपके पैसे। तीन...तीन...तीन.. एक... और एक... उठा लीजिए।
और मैंने उन्हें ग्यारह रूबल दे दिए। उन्होंने चुपचाप पैसे ले लिए और काँपते हुए हाथों से उनको अपनी जेब में रख लिया।
--- धन्यवाद। उन्होंने फ़्राँसिसी भाषा में फुसफुसाकर कहा।
मैं झटके से उठ खड़ा हुआ और कमरे में चक्कर काटने लगा। मुझे गुस्सा आ गया था।
--- किसलिए धन्यवाद? मैंने पूछा।
--- पैसों के लिए धन्यवाद।
--- पर मैंने तो आपको लूट लिया है। बेड़ा ग़र्क हो मेरा ! किसलिए धन्यवाद?
--- दूसरी जगहों पर तो मुझे यह भी नहीं दिया जाता था।
--- नहीं दिया जाता था? तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? मैंने तो आपसे मज़ाक किया है। मैंने आपको एक क्रूर सबक सिखाया है। मैं आपका एक-एक पैसा दे दूँगा। ये देखिए, यह लिफ़ाफ़े में आपकी पूरी तनख़्वाह रखी हुई है। आप ग़लत बात का विरोध क्यों नहीं करतीं। आप चुप कैसे रह जाती हैं? क्या इस दुनिया में कोई इतना बेचारा और असहाय भी हो सकता है? क्या आपकी इच्छाशक्ति इतनी कमज़ोर है? क्या यह सम्भव है?
वह उदासी से मुस्कराई और मैंने उसके चेहरे पर पढ़ा -- हाँ, यह सम्भव है।
मैंने अपने क्रूर व्यवहार के लिए उससे माफ़ी माँगी और उसे दो महीने की पूरी तनख़्वाह के अस्सी रूबल दे दिए। वह आश्चर्यचकित हो उठी और बेहद संकोच के साथ मेरा आभार प्रकट करने लगी। फिर वो कमरे से बाहर चली गई और मैं सोचने लगा कि इस दुनिया में ताक़तवर बनना बहुत आसान बात है !
मूल रूसी भाषा से अनुवाद

1 टिप्पणी:

samay ke sakhi ने कहा…

clasic की नकल भी कितनी ज्यादा होती है और मामूली हेरफेर के साथ। इक ऐसा ही राज आपकी अनूदित कहानी पढ़कर स्पष्ट हुआ। वर्षों पहले , ठीक तरह याद नहीं आ रहा किन्तु यही कहानी फर्क सिर्फ इतना कि यहां पिता है वहां माम थी और पूरी कहानी हूबहू। अनुवाद कितने जरूरी है ताकि ऐसी चालाकियों को खोल जा सके । थंक्स असपकि अनूदित कहानी मेरे प्रिय लेखक की पढ़करमुझे उस अज्ञात लेखक को कारगुजारी याद आई।