गुरुवार, 24 सितंबर 2015

                          रूसी मुहावरे
आज आपको तीन-चार रूसी मुहावरे सिखाता हूँ और उनका अर्थ भी बताता हूँ। 
 1.  तुम्हें किस मक्खी ने काटा है?
 
1.  तुम्हें किस मक्खी ने काटा है?
’ककाया मूख़ा तिब्या उकुसीला?’ — यानी तुम्हें किस मक्खी ने काटा है?  यह मुहावरा  रूसी भाषा में उस आदमी से कहा जाता है, जो बिना किसी कारण अचानक ही नाराज़ होने लगता है या गुस्सा होने लगता है या कोई ऐसी हरकत करने लगता है, जो अप्रत्याशित होती है।
हालाँकि रूसी भाषा में यह मुहावरा फ़्राँसिसी भाषा से आया है, लेकिन फिर भी रूसी लोग इस मुहावरे के इतने आदी हैं कि वे इसका अक्सर इस्तेमाल करते हैं। इस मुहावरा का जन्म उन लोगों के कारण हुआ जो शगुन-अपशगुन में विश्वास रखते हैं। फ़्राँसिसीयों की तरह रूसी लोग भी यह मानते हैं कि मक्खियाँ, भिंड़, गुबरैले और दूसरे कीड़े शैतान के कहने से ही सब कुछ करते हैं। जब किसी आदमी के चेहरे पर, नाक पर या कान पर कोई भिंड या मधुमक्खी काट लेती है तो वह व्यक्ति दर्द से इतना बेचैन हो जाता है कि वह पागलों की तरह हरकतें करने लगता है और बेचैन हो जाता है। इसलिए इस मुहावरे में ’मूख़ा’ का मतलब मक्खी नहीं, बल्कि मधुमक्खी से है।
’मक्खी’ यानी ’मूख़ा’  से जुड़ा एक और मुहावरा भी रूसी भाषा में बोला जाता है — ’ओन ई मूखि ने अबीजित’ यानी वह मक्खी को भी नाराज़ नहीं कर सकता। हिन्दी में हम इसे कहेंगे कि वह मक्खी भी तो नहीं मार सकता है। इसका मतलब रूसी भाषा में यह होता है कि वह व्यक्ति इतना दयालु है कि एक मक्खी  को भी वह नहीं मार सकता है यानी वह व्यक्ति किसी को नाराज़ तक नहीं कर सकता है।

 2.  अपनी नाक पर खोद लीजिए



2.  अपनी नाक पर खोद लीजिए
भारत की तरह रूस में भी  ’नोस’ यानी ’नाक’ को लेकर बहुत से मुहावरे बोले जाते हैं, जैसे — ’ज़दीरात नोस’ यानी नाक ऊँची करना,  ’वेशत नोस’ यानी नाक लटकाना (भारत में ’मुँह लटकाना’) और ’सूयूत नोस व चुझीए देला’  किसी दूसरे के काम में नाक घुसाना आदि-आदि।
तो आइए आज हम रूस में  बोले जाने वाले ’नाक’ से जुड़े  मुहावरों की चर्चा करते हैं। नाक चेहरे का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती है। इसलिए नाक को लेकर कई दिलचस्प मुहावरे रूस में सुनाई देते हैं। लेकिन एक मुहावरा तो इस बात की ख़िलाफ़त करता है कि नाक चेहरे का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह मुहावरा  है — अस्तातस्या स नोसम  (अपनी नाक लेकर रह जाना) -- यानी धोखे में पड़ जाना (या जैसाकि भारत में कहा जाता है —अपना छोटा-सा मुँह लेकर रह जाना) या कुछ भी हाथ न लगना।
यह मुहावरा अस्तातस्या स नोसम (अपनी नाक लेकर रह जाना) प्राचीन रूस में बना था। तब यदि किसी लड़के को कोई लड़की पसन्द आ जाती थी, तो वह उपहार लेकर उस लड़की के घर उसका हाथ माँगने के लिए जाता था। उस उपहार को तब ’नोस’ कहा जाता था यानी ’जो कुछ लाया गया है’। यदि लड़के को लड़की का हाथ देने से मना कर दिया जाता था तो वह लड़का उस उपहार यानी नोस के साथ ही वापिस चला जाता था। बस यही से यह यह मुहावरा बन गया — अस्तातस्या स नोसम  (अपनी नाक लेकर रह जाना)। लेकिन इस मुहावरे में ’नोस’ शब्द का मतलब तब नाक नहीं बल्कि उपहार होता था।
रूसी भाषा में ’नोस’ यानी नाक को लेकर एक और मुहावरा अक्सर कहा जाता है —  ’ज़ारुबीत सिब्ये ना नोसू’ यानी अपनी नाक पर खोद लो। हिन्दी में इस मुहावरे का मतलब होता है ’गाँठ बाँध लो’ या ’याद रखो’। यहाँ भी ’नोस’ शब्द का मतलब ’नाक’ नहीं है। पुराने ज़माने में रूसी लोगों के पास एक तख़्ती हुआ करती थी। वे सारा हिसाब-किताब इस तख़्ती पर ही लिख लेते थे। तब लिखने को खोदना या काटना कहा जाता था। ज़ारुबीत सिब्ये ना नोसू यानीअपनी तख़्ती पर खोद लो या काट लो। अब उस तख़्ती की जगह कम्प्यूटर और आर्गनाइजर आ गए हैं। लेकिन रूसी भाषा में यह मुहावरा बाक़ी रह गया है, जिसका मतलब होता है ’गाँठ बाँध लो’ या ’याद रखो’।
इसके अलावा एक और मुहावरा रूसी भाषा में बोला जाता है — क्ल्यूऐत नोसम यानी नाक से चुगना। लेकिन इस मुहावरे का अर्थ होता है — नींद का झोंका आना।

 3.  मूँछ में लपेट लो  और  मूँछ भी नहीं हिली !
 
3.  मूँछ में लपेट लो  और  मूँछ भी नहीं हिली !
रूसी भाषा में ऐसे बहुत से मुहावरे हैं, जिनमें अक्सर मूँछ का ज़िक्र आता है। जैसे ’मताय ना ऊस’ (यानी मूँछ में लपेट लो या मूँछ में हिलगा लो)। ’मताय ना ऊस’ —  अक्सर माता-पिता अपने उन छोटे बच्चों से यह मुहावरा कहते नज़र आते हैं, जिनके अभी मूँछें उगी नहीं हैं और न जाने कितने बरस में उनके मूँछें उगेंगी। इस मुहावरे का मतलब होता है — इस बात को ध्यान में रखो।
बात यह है कि रूस में मूँछ का होना व्यक्ति के वयस्क होने और अनुभवी होने का प्रतीक माना जाता था। जिस व्यक्ति के मूँछ होती थी, उसे पुराने समय में रूस में बहुत बुद्धिमान माना जाता था। मूँछ में लपेट लो या मूँछ में हिलगा लो, जैसे मुहावरा इसलिए पैदा हुआ क्योंकि मूँछवाले लोग उस समय अपनी मूँछे एँठते रहते हैं, जब वे कुछ सोच रहे होते हैं।
यह भी माना जाता है कि यह मुहावरा इसलिए पैदा हुआ क्योंकि प्राचीन रूस में किसी बात को याद करने के लिए लोग अपनी मूँछ में गाँठ बाँध लेते थे। जब भी कोई काम करना होता था तो मूँछ में गाँठ बाँध ली। अब जब तक काम नहीं होगा, मूँछ में गाँठ बँधी रहेगी और व्यक्ति को यह याद दिलाती रहेगी कि उसे फलाना काम करना है।
मूँछ से जुड़ा हुआ एक और मुहावरा रूस में बोला जाता है  — ’ऊस ने दूइ’ यानी मूँछ भी नहीं हिली। इस मुहावरे का मतलब होता है कि उसे ज़रा भी परवाह नहीं है या  बिल्कुल चिन्ता नहीं है। यह मुहावरा रूस में उस पुराने  समय से चला आ रहा है, जब हर पुरुष मूँछ-दाढ़ी रखा करता था। किसान जब भारी परिश्रम करने के बाद घर लौटता था तो उसकी मूँछों और दाढ़ी के बाल पसीने से तर होकर भारी हो जाते थे। लेकिन जो लोग कामचोर होते थे और काम की कोई परवाह नहीं करते थे उनके बारे में कहा जाता था -- ’ओन इ व ऊस ने दुइ’ यानी उसे काम की बिल्कुल चिन्ता नहीं है या वह तो पूरी तरह से लापरवाह व्यक्ति है।


4.  ’खुले पैरों पर’ रहना ( यानी नवाबी करना या अय्याशी करना)

 


4.  ’खुले पैरों पर’ रहना ( यानी नवाबी करना या अय्याशी करना)
’खुले पैरों पर रहना’ (झीच ना शिरोकुयू नोगू)-- यह मुहावरा रूसी भाषा में अँग्रेज़ी से आया है। इस मुहावरे की रचना के पीछे जो कथा कही जाती है, वह इस प्रकार है। बारहवीं शताब्दी में इंगलैण्ड में राजा हेनरी द्वितीय का शासन था। अचानक उसके पैर की एक उँगली पर बड़ा-सा मस्सा उग आया। राजा ने उस मस्से का बहुत इलाज कराया, पर वैद्य-हक़ीम सब उस मस्से को दूर करने में असफल रहे। मस्सा बढ़ता रहा और इतना बड़ा हो गया कि राजा का पैर भद्दा दिखाई देने लगा।
राजा ने अपने लिए एक ऐसा जूता बनाने को कहा, जिसे पहनने में मस्सा बाधा पैदा न करे। मोची ने राजा के लिए जो जूता तैयार किया, उसकी नोक आगे से ऊपर को उठी हुई थी। ऊँची नोक वाला वह जूता सभी दरबारियों को बहुत पसन्द आया। बस, फिर क्या था। अगले दिन से मोची के आगे दरबारियों की लाइन लग गई। सब ऊपर को उठी हुई ऊँची नोक वाला जूता बनवाना चाहते थे। हर आदमी यह चाहता था कि उसके जूते की नोक ऊँची से ऊँची हो।
आख़िर राजा को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। इंगलैण्ड में यह नियम बना दिया गया कि आम नागरिकों के जूते की नोक सिर्फ़ आधा फ़ुट (15 सेण्टीमीटर) लम्बी होगी। योद्धाओं और ज़मीदारों को एक फ़ुट (30 सेण्टीमीटर) तक जूते की नोक लम्बी रखने का अधिकार दिया गया। और काउण्ट अपने जूते की नोक दो फ़ुट तक लम्बी रख सकते थे।
इस तरह इंगलैण्ड के समाज में जूते का साइज इस बात का प्रतीक हो गया कि समाज में कौन कितना प्रभावशाली और धनवान है। अमीर लोगों के लिए कहा जाने लगा -- देखो, कितने बड़े पैरों पर रह रहा है यह।
रूस में इस मुहावरे  (झीच ना शिरोकुयू नोगू)  का इस्तेमाल  व्यापक रूप से क़रीब सौ-डेढ़ सौ साल पहले ही तब शुरू हुआ, जब रूस के साहित्यिक-पत्र ’लितरातूरनया गज़्येता’ ने इस मुहावरे के बनने के पीछे की कहानी पहली बार छापी थी। पहले रूस में पाठकों के बीच इस मुहावरे का चलन शुरू हुआ। बाद में आम लोग भी इस मुहावरे का इस्तेमाल करने लगे। इस तरह अँग्रेज़ी भाषा का यह मुहावरा रूसी भाषा में भी जगह पा गया।

कोई टिप्पणी नहीं: